नई दिल्ली. भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर में डीएसटी-एसईआरबी की ओर से कृषि और पालतू जानवरों में प्रजनन स्वास्थ्य और बीमारियों को लेकर अल्ट्रासोनोग्राफी तकनीक विषय पर एक वर्कशॉप का आयोजन किया गया. इस वर्कशॉप में देश के 9 राज्यों में पशु चिकित्सा स्त्री रोग एवं प्रसूति, शल्य चिकित्सा और एलपीएम में मास्टर या डॉक्टरेट की डिग्री हासिल किए हुए 25 ट्रेनीज ने वर्कशॉप में हिस्सा लिया. इस दौरान डॉ. हरेंद्र कुमार ने कहा कि शुरुआती गर्भावस्था के निदान, बांझपन जांच और प्रजनन मे हो रही दिक्कतों पर अल्ट्रासोनोग्राफी तकनीक की जरूरत को बताया.
उन्होंने सभी प्रतिभागियों से कहा कि रेगुलर नए ज्ञान और कौशल का उपयोग करें और एक सफल चिकित्सक बनने के लिए योग्यता विकसित करें. पशुधन उत्पादन एवं प्रबंधन अनुभाग के प्रभारी डॉ. मुकेश सिंह ने एलपीएम अनुभाग की गतिविधियों, हाल की अनुसंधान उपलब्धियों और एलपीएम अनुभाग में नस्ल पंजीकरण पर प्रकाश डाला. उन्होंने सभी प्रतिभागियों से इस कार्यशाला के दौरान सीखी गई तकनीकों और ज्ञान को दोहराने का आग्रह किया.
तकनीक का रोल है अहम
इस अवसर पर पशु रीप्रोडक्शन डिपार्टमेंट के विभागाध्यक्ष और डॉ. एमएच. खान ने प्रतिभागियों से अनुरोध किया कि वे सहायक प्रजनन तकनीकों, बांझपन प्रबंधन और फार्म जानवरों में प्रारंभिक गर्भावस्था निदान से संबंधित नई प्रैक्टिस और रिसर्च कार्य में अल्ट्रासोनोग्राफी तकनीकों का उपयोग करें. उन्होंने कहा कि आज के वैज्ञानिक युग में कृषि पशुओं की उत्पादकता बढ़ाने में उच्च स्तरीय तकनीकों के महत्व और भूमिका पर भी जोर दिया. पाठ्यक्रम निदेशक डॉ. एम. के. पात्रा ने कहा कि इस कार्यशाला के प्राथमिक और उन्नत सोनोग्राफी तकनीकों को कवर करने वाले बड़े और छोटे दोनों जानवरों में प्रजनन अल्ट्रासोनोग्राफी में हैंड्स-ऑन प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित किया.
क्या-क्या बताया गया
इस दौरान प्रतिभागियों को बेसिक रेक्टल परीक्षा तकनीक, गर्भावस्था निदान, बांझपन जांच, हेमेटो-बायोकैमिकल ऐसे, हिस्टोपैथोलॉजिकल तकनीक, एलिसा और रेडियोइम्यूनोएसे आदि पर भी प्रशिक्षित किया गया. अफसरों ने बताया कि कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य 15 विभिन्न पशु चिकित्सा महाविद्यालयों के प्रतिभागियों को व्यावहारिक शिक्षण अनुभव प्रदान करना था। प्रशिक्षण को विशेष रूप से प्रजनन अल्ट्रासोनोग्राफी के बुनियादी पहलू में कौशल और योग्यता विकसित करने के लिए डिज़ाइन किया गया था. कार्यशाला ने युवा मस्तिष्क को संवेदनशील बनाने के लिए एक मंच प्रदान किया ताकि वे अपने नैदानिक अभ्यास और स्नातकोत्तर अनुसंधान गतिविधियों में इन शिक्षण को लागू कर सकें. उन्होंने बताया कि कार्याशाला के 10 दिनों के दौरान 15 सिद्धांत व्याख्यान और 20 व्यावहारिक सत्र आयोजित किए गए थे. वर्कशॉप के आखिरी में डॉ. अयोन तारफदार धन्यवाद दिया. इस अवसर पाठ्यक्रम समन्वयक डॉ. अभिषेक सक्सेना, डॉ. हरिओम पांडे, डॉ. बृजेश कुमार, डॉ अश्वनी कुमार पांडे तथा डॉ ए.के. एस. तोमर आदि उपस्थित रहे.
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