नई दिल्ली. बकरी पालन करना बहुत ही मुनाफाबख्श सौदा साबित होता जा रहा है. किसान दूध, मीट से खूब कमाते हैं. जबकि बकरीद के मौके पर तो एक जानवर पर 7 से 8 हजार तक बचत हो जाती है. कहा जाता है कि जब जरूरत हो तो दूध निकालकर बेच लो और जब ज्यादा रुपयों की जरूरत हो तो बकरी को बेच दो. एक्सपर्अ कहते हैं कि कम लागत में 100 फीसदी मुनाफा देने वाला इससे अच्छा कोई कारोबार नहीं है. हालांकि ये तब संभव है जब जब बकरी के बच्चों की मृत्यु दर कम किया जा सके. क्योंकि ऐसा न हो पाने की कंडीशन में नुकसान भी होगा. इस संबंध में केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के सीनियर साइंटिस्ट का कहना है कि बकरी पालन में जरा भी लापरवाही हुई तो बड़े नुकसान के लिए तैयार हो जाइए.
साइंटिस्ट का कहना है कि बकरी पालन में सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों में मृत्यु दर के कारण ही होता है. यदि बकरी के बच्चों की मृत्यु् दर घटा दिया जाए तो नुकसान भी कम हो जाएगा. एक्सपर्ट का कहना है कि इसे कम करने के लिए किसी लम्बे-चौड़े बजट की जरूरत नहीं है बस सीआईआरजी मथुरा द्वारा दिए गए चार्ट का पालन करिए और मृत्यु दर को घटा लीजिए. वहीं सीआईआरजी के सीनियर साइंटिस्ट का कहा है कि कोई जरूरी नहीं है कि बकरी को गर्भवती कराने के लिए उसकी मीटिंग बकरे से कराया जाए. आर्टिफिशल इंसेमीनेशन तकनीक से भी बकरी को गर्भवती किया जा सकता है. हालांकि ख्याल इस बात का रखना पड़गा कि जब भी बकरी गर्भवती करें तो मौसम को जरूर देख लें. ताकि जब बच्चे पैदा हों तो न ज्यादा गर्मी हो और न ही ज्यादा सर्दी. ऐसे में बच्चे दोनों मौसम का सामना करने में सक्षम हो जाएंगे.
सीआईआरजी के साइंटिस्ट डॉ. एमके सिंह कहते हैं कि बकरी छोटे बच्चों के लिए मौसम सबसे बड़ा दुश्मन है. यदि ज्यादा गर्मी और कड़ाके की ठंड में बच्चे पैदे होते हैं तो उनके लिए ये बहुत ही नुकसान पहुंचाने वाला होगा. यही वजह है कि पशुपालको पता होना चाहिए कि बकरियों से बच्चा कब पैदा कराया जाए. आमतौर पर नॉर्थ इंडिया में बकरियों के बच्चों में सबसे ज्यादा मृत्यु दर है. इसकी वजह ये है कि यहां यहां गर्मी और सर्दी के मौसम में बड़ा अंतर होता है और गर्मी भी ज्यादा पड़ती है जबकि सदी भी.
ऐसे में पशुपालकों को कोशिश करनी चाहिए कि साल में दो मौके ऐसे होते हैं जब बकरियों को गाभिन कराया जाए. एक्सपर्ट कहते हैं कि 15 अप्रैल से 30 जून तक बकरी को गाभिन कराने का सभी मौका होता है. वहीं इसके अलावा बात करें तो अक्टूबर और नवंबर में भी बकरी को गाभिन कराया जा सकता है. ऐसा करने से जो बकरी अप्रैल से जून तक गाभिन हुई तो वो अक्टूरर-नवंबर में बच्चा देगी. जब अक्टूबर-नवंबर में गाभिन होगी तो बकरी फरवरी-मार्च में बच्चा देगी. ऐसे में ये महीने न तो ज्यादा ठंड वाले होते हैं और न ही ज्यादा गर्मी वाले. पशुपालक बकरी के बच्चों का थोड़ा सा भी ख्याल रखें तो इन महीनों में बकरी के बच्चों को कोई तकलीफ नहीं होगी. बकरी पालन के लिहाज से यह वो महीने हैं जब बकरी के बच्चों का वजन भी तेजी से बढ़ता है. हर तरह से फायदा ही फायदा है.
वहीं डॉ. एमके सिंह का कहना है कि बकरी के बच्चों की मृत्यु् दर कम करने के कई तरीके हैं लेकिन उसमें से एक ये भी है कि जैसे ही बच्चा पैदा हो उसे फौरन ही मां का दूध पिलाया जाना चाहिए. इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए कि बकरी ने बच्चा देने के बाद जैर गिराई हो या नहीं. वहीं जब बच्चे का वजन एक किलो हो जाए तो 100 से 125 ग्राम तक दूध पिलाना चाहिए. बच्चे को दिनभर में तीन से चार बार में दूध पिलाना चाहिए. मौसम से बचाने के उपाय भी करना जरूरी है. वहीं जब बच्चा 18 से 20 दिन का हो जाए तो उसे पत्तियों की कोपल देना चाहिए. एक महीने का होने पर पिसा हुआ दाना खिलाना चाहिए. जब बकरी का बच्चा तीन महीने का हो जाए तो उसका टीकाकरण शुरू करा देना चाहिए.
साइंटिस्ट के मुताबिक इस बात का भी खास ख्याल रखा जाना चाहिए कि जब बकरी बच्चा देने वाली हो तो उससे डेढ़ महीने पहले से बकरी को भरपूर मात्रा में हरा, सूखा चारा और दाना खिलाना चाहिए. इससे होगा यह कि पेट में पल रहे बच्चे तक भी अच्छी खुराक मिलेगी. साथ ही जब बच्चा पैदा होगा तो उसके बाद बकरी दूध भी अच्छा और ज्यादा देगी.
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