नई दिल्ली. देश में झींगा पालन तेजी के साथ बढ़ रहा है. घरेलू बाजार से लेकर विदेशी बाजार में झींगा की डिमांड है. हालांकि घरेलू बाजार में उतनी डिमांड नहीं है, जितनी विदेश में है. यही वजह है कि देश का 90 फ़ीसदी से ज्यादा झींगा एक्सपोर्ट किया जाता है. झींगा एक ऐसी फसल है, जिसे एक वर्ष में तीन से चार बार तैयार किया जा सकता है. अगर सही से दवा और दाना पहुंचता रहे तो उत्पादन भी खूब होता है. जबकि झींगा दूसरी मछलियों के मुकाबले ज्यादा मुनाफा भी कमा कर देता है. यही वजह है कि झींगा पालन में ड्रोन की अहमियत बढ़ती जा रही है. आईए जानते हैं ड्रोन झींगा पालन में क्यों जरूरी है.
बीमारी फैलना का खतरा कम हो जाता है
झींगा एक्सपर्ट कहते हैं कि तालाब बड़े होने के कारण हर एक झींगा तक दाना और दवाई पहुंचाना सबसे बड़ी चुनौती होती है. ड्रोन आने से यह परेशानी काफी हद तक दूर हो सकती है. क्योंकि ड्रोन ही है जो तालाब के हर एक-एक कोने पर फीड और दवाई पहुंचा सकता है. झींगा की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कम होती है. इसलिए यह बीमारी की चपेट में जल्दी आ जाते हैं. अगर हर एक जगह झींगा तक दवाई पहुंच जाए तो बीमारी फैलने का खतरा न के बराबर रह जाता है. झींगा हैचरी संगठन के अध्यक्ष आंध्र प्रदेश निवासी रवि कुमार येलांकी कहते हैं कि चीन-अमेरिका भारत के झींगा के बड़े उपभोक्ता हैं. देश में धीरे-धीरे झींगा की डिमांड भी बढ़ रही है.
ड्रोन से पहुंचाई जा सकती है फीड और दवा
बेशक घरेलू बाजार में फ्रोजन झींगा की मांग कम है. बाजार में झींगा रेट उसके वजन नहीं साइज के हिसाब से तय होते हैं. रवि कुमार का कहना है कि तालाब के एक कोने से दूसरे कोने पर जाकर झींगा को झींगा पालक हाथ से दाना और दवाई खिलाते हैं. हर झींगा पालक की यही कोशिश होती है कि सभी झींगा को बराबर दाना मिल जाए. ऐसा न होने पर कुछ झींगा ज्यादा वजनदार हो जाते हैं जबकि कुछ का कमजोर रह जाते हैं. क्योंकि झींगा के तालाब बड़े-बड़े होते हैं तो जब तक दूर का झींगा फीड के पास आता है तो पास वाला झींगा फीड को चट कर चुका होता है, लेकिन ड्रोन से हर जगह झींगा को दवा और फीड पहुंचाई जा सकती है.
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