नई दिल्ली. पशुओं में होने वाली बबेसिओसिस एक ऐसी बीमारी है जो हर तरह के पशुओं को अपना शिकार बना लेती है. यह पशुओं में होने वाला वो रोग है जो रक्त प्रोटोजोआ के जरिए होता है. पशुओं को लेकर काम करने वाली निविदा संस्था ने देश भर में इस बीमारी के प्रसार की संभावना आ जाता आई है. संस्था की ओर से जारी किए गए डाटा में कहा गया है कि देश की 93 शहरों में इसका असर देखने को मिलेगा. सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश और उसके बाद झारखंड में इसका असर देखने को मिल सकता है.
गंभीर बता ये है कि इसी महीने में ये बीमारी का असर ज्यादा होगा. संस्था की ओर से जारी किए गए आंकड़ों पर गौर करें तो असम में सात शहर, बिहार के तीन, गोवा का एक और झारखंड का 25 शहर इसे प्रभावित होगा. जबकि केरल में 12, पांडुचेरी में दो, राजस्थान में एक, त्रिपुरा में दो, वेस्ट बंगाल में 10 जिलों में इस बीमारी का खतरा सबसे ज्यादा है. वहीं उत्तर प्रदेश के 30 जिलों में इसका खतरा बताया जा रहा है. वहीं देश के कुल9 राज्यों के 93 शहरों में इस बीमारी का खतरा है.
क्या है ये रोग जानें यहां
एक्सपर्ट के मुताबिक बबेसिओसिस पशुओं में होने वाला वह रोग है जो रक्त प्रोटोज़ोआ की वजह से होता है. जो यूनिसेल्यूलर जीव है. यह मलेरिया-जैसा रोग है, जो बबेसिया नाम के प्रोटोजोवा के संक्रमण की वजह से होता है. स्तनधारियों जीवों में ट्राइपैनोसोम के बाद बबेसिया दूसरा सबसे ज्यादा होने वाला रक्त परजीवी है. अगर इसके उपचार की बात की जाए तो इमिडोकार्ब को 1.2 मिलीग्राम/किग्रा, एससी, एक बार दिया जाता है. जबकि 3 मिलीग्राम/किग्रा की खुराक पर, इमिडोकार्ब लगभग 4 सप्ताह तक बेबीसियोसिस से पशुओं को सेफ्टी प्रदान करता है.
क्या हैं इस बीमारी के लक्षण
इस रोग के लक्षण की बात की जाए तो सुस्ती, कमजोरी, अवसाद और बुखार (अक्सर 106 डिग्री फारेनहाइट 41 डिग्री सेल्सियस है, जो पूरे समय बने रहते हैं, और बाद में इनके साथ भूख न लगना, एनीमिया, पीलिया और वजन में कमी भी आती है. हीमोग्लोबिनेमिया और हीमोग्लोबिनुरिया अंतिम चरण में होते हैं. हालाँकि छोटे जुगाली करने वाले जानवर बेबेसिया की कई प्रजातियों से संक्रमित हो जाते हैं. इसमें दो सबसे महत्वपूर्ण प्रजातियां बीओविस और बी मोटासी हैं. एक्सपर्ट का कहना है कि इंसानों में यह रोग पाया जाता है लेकिन बहुत कम असर दिखाई देता है.
खून में घुसते हैं बबेसिया
एक्सपर्ट ये भी कहते हैं कि बबेसिया प्रजाति के प्रोटोज़ोआ पशुओं के खून में चिचडियों किलनी या कुटकी के माध्यम से दाखिल हो जाते हैं. वे खून की लाल रक्त कोशिकाओं में जाकर अपनी संख्या को तेजी के साथ बढ़ाते हैं. इस वजह से लाल खून की कोशिकायें खत्म होने लग जाती हैं. लाल रक्त किशिकाओं में मौजूद हीमोग्लोबिन पेशाब के द्वारा शरीर से बाहर निकलने लगता है जिससे पेशाब का रंग कॉफी के रंग में तब्दील हो जाता है. कभी-कभी पशु को खून वाले दस्त भी लग जाते हैं. इस वजह से पशु खून की कमी हो जाने से बहुत कमज़ोर हो जाते हैं. इसमें पीलिया के लक्षण भी दिखाई देते हैं औंर समय से इलाज न कराया जाए तो पशु की मौत हो सकती है.
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