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PAU: इस खास आटे की खाइए रोटी-पूरी, पराठे, नहीं रहेगा डायबिटीज का डर

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समझौते पर हस्ताक्षर किया.

नई दिल्ली. डायबिटीज पेशेंट हमेशा ही अपने खाने को लेकर चिंचित रहते हैं. डॉक्टरों की ओर से भी उनके खानपान पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी जाती हैं. ऐसा उनकी सेहत के लिए किया जाता है. खैर अब पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) ने ऐसा आटा तैयार किया है जिसको खाने से डायबिटीज का डर नहीं रहेगा. वो बड़े चाव के साथ चाहे रोटी-पूरी या फिर पराठे, बड़े सुकून के साथ खा सकते हैं. वहीं पंजाब कृषि विश्वविद्यालय मधुमेह रोगियों के लिए मल्टीग्रेन आटे की टेक्नोलौजी के व्यावसायीकरण के लिए ग्रेनसेरा प्राइवेट लिमिटेड, लुधियाना के साथ एक समझौता भी किया है.

इस संबंध में पीएयू के अनुसंधान (फसल सुधार) के अतिरिक्त निदेशक डॉ. जीएस मंगत और फर्म के प्रतिनिधि सरदार ज्ञान सिंह ने अपने संगठनों की ओर से समझौता ज्ञापन (एमओए) पर हस्ताक्षर किया है. समझौते के अनुसार, विश्वविद्यालय भारत के भीतर मधुमेह रोगियों के लिए मल्टीग्रेन आटे के उत्पादन के लिए उपरोक्त फर्म को गैर-विशिष्ट अधिकार प्रदान करता है. इस संबंध में खाद्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की प्रमुख डॉ. सविता शर्मा ने बताया कि मधुमेह रोगियों के लिए मल्टीग्रेन आटा कई अनाजों का उपयोग करके बनाया गया एक फॉर्मूलेशन है, जिसे विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया है.

इस खास अनाज से किया गया है विकसित
उन्होंने बताया कि बाजार में भारी मांग वाले इस फॉर्मूलेशन को कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले अनाज से विकसित किया गया है और चपाती तैयार करने के लिए स्टैंडलाइज्ड किया गया है. उन्होंने कहा कि यह कई स्वदेशी अनाज उत्पादों जैसे पराठा, पूरी आदि के लिए भी उपयुक्त है. उन्होंने कहा कि इस आटे से बनी चपाती हो या फिर पराठे बिना डर के डायबिटिक पेशेंट खा सकते हैं. ये उनके के लिए सेफ है. इसके अलावा, फूड टेक्नोलॉजिस्ट डॉ. जसप्रीत कौर ने बताया कि फॉर्मूलेशन में उपयुक्त कार्यात्मक और शेल्फ-लाइफ विशेषताएं पाई गई हैं.

टेक्नोलॉजी के प्रचार-प्रसार होगा
टेक्नोलॉजी मार्केटिंग और आईपीआर सेल के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. खुशदीप धरनी ने बताया कि पीएयू प्रौद्योगिकियों को व्यावसायीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से अंतिम कंज्यूमर्स तक प्रसारित किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि पीएयू ने प्रयोगशालाओं से बाजारों तक टेक्नोलॉजी के प्रचार-प्रसार के लिए 364 एमओए पर हस्ताक्षर किए हैं. रिसर्च डायरेक्टर डॉ. अजमेर सिंह धट्ट और अनुसंधान (कृषि इंजीनियरिंग) के अतिरिक्त निदेशक डॉ. गुरसाहिब सिंह मानेस ने इस तकनीक के व्यावसायीकरण के लिए डॉ. शर्मा और डॉ. कौर को बधाई दी.

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