नई दिल्ली. कुत्तों के आतंक से हर कोई परेशान है. देश में दिन लाखों लोगों को अपना शिकार बनाते हैं. कुत्ता काटने के बाद लोगों को रैबीज का इंजेक्शन लगवाना पड़ता है. अगर समय पर मरीज को रैबीज काा इंजेक्शन न लग पाए तो मरीज की मौत भी हो जाती है. इसी मंशा को ध्यान में रखते हुए देश की अलग-लग प्रदेशों की सरकारें काम करती हैं. लगातार कुत्तों का शिकार हो रहे लोगों को बचाने के लिए उत्तर प्रदेश की सरकार ने नया तरीका अपनाया है. आवारा कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने नसंबदी अभियान चलाया जा रहा है, जिससे उनकी संख्या न बढ़ सके.
उत्तर प्रदेश के अगारा शहर को रैबीज फ्री सिटी बनाने के लिए नगर निगम अभियान चला रहा है. इसके तहत कुत्तों का टीकाकरण किया जा रहा है. यह अभियान केंद्र सरकार की योजना के तहत चलाया जा रहा है. इससे पहले नगर निगम ने शहर में कुत्तों की आबादी पर नियंत्रित करने के लिए नसबंदी अभियान भी चला रखा है. नगर निगम अभी तक करीब 45 हजार कुत्तों का वैक्सीनेशन और नसबंदी कर चुका है.
तानगरी में 70-80 हजार आवारा कुत्ते
शहर में आवारा कुत्तों की संख्या को लेकर कोई आधिकारिक आंकड़े तो नहीं हैं लेकिन नगर निगम के अधिकारियों के अनुमान के मुताबिक इनकी संख्या 70-80 हजार के करीब है. शहर के चारों जोन में नसबंदी सेंटर बनाए गए हैं। कुत्तों को पकड़कर यहां लाया जाता है और नसबंदी करने के बाद जहां से लाए जाते हैं वहां छोड़ दिया जाता है.
केंद्र सरकार चलाई है शहर को रैबीज फ्री बनाने की योजना
केंद्र सरकार की योजना आई थी जिसमें शहर को रैबीज फ्री बनाने के लिए कुत्तों को वैक्सीन लगानी थी. निगम ने दोनों योजनाओं को एक साथ लागू किया है और काम किया जा रहा है. पिछले दिनों मंडलायुक्त की अध्यक्षता में हुई बैठक में नगर आयुक्त अंकित खंडेलवाल ने बताया कि अभी तक 45 हजार से अधिक श्वानों का वैक्सीनेशन/नसबंदी किया जा चुका है.
बंदरों के लिए भी रेसक्यू सेंटर
नगर आयुक्त अंकित खंडेलवाल ने बताया कि बंदरों के लिए अनुबंधित संस्था द्वारा दयालबाग में रेस्क्यू सेंटर संचालित किया जा रहा है. अब तक करीब 11 हजर बंदरों को पड़कर वैक्सीनेशन/नसबंदी करने के पश्चात पुनर्वास किया गया जा चुका है. मंडलायुक्त ने आवारा श्वानों एवं बंदरों के लिए रेसक्यू व पुनर्वास केंद्र खोलने हेतु एक प्रोजेक्ट तैयार को करने को कहा है. इन केंद्रों पर ट्रीटमेंट होने के बाद श्वानों की तरह बंदरों को भी चिन्हित किया जाए ताकि यह जानकारी रहे कि कितने बंदरों का प्रॉपर ट्रीटमेंट हो चुका है.
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