नई दिल्ली. भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, आईवीआरआई जल्द ही रूहेलखंड की गायों के पशुधन को पंजीकृत करने जा रहा है, जिसके लिए संस्थान में पशु अनुवांशिक संसाधनों की नेटवर्क परियोजना एनबीएजीआर, करनाल के सहयोग से संचालित की जा रही है. संस्थान शीघ्र ही इसको पंजीकरण के लिए फाइल करने जा रहा है, जिससे इस गाय की नस्ल को एक नई पहचान मिलेगी और किसानों की आय में भी वृद्धि होगी. इस संबंध में गुरुवार को संस्थान में संवाद बैठक का आयोजन कर इस बारे में चर्चा की गई.
संस्थान के निदेशक डॉक्टर त्रिवेणी दत्त ने बताया कि नेटवर्क परियोजना के तहत रूहेलखण्ड क्षेत्र के पशुधन जिनमें गाय, भेड़ एवं पोनी को लिया गया है. इसमें रूहेलखंड गाय के पंजीकरण के सभी मानकों को पूर्ण कर लिया गया है और संस्थान शीघ्र ही इसको पंजीकरण के लिए फाइल करने जा रहा है, जिससे इस गाय की नस्ल को एक नई पहचान मिलेगी और किसानों की आय में भी वृद्धि होगी. संस्थान पशु संरक्षण के तहत विभिन्न जर्म प्लाज्म पर कार्य कर रहा है. इस कार्य को पूरा करने के लिए वैज्ञानिकों और प्रक्षेत्र सहायकों की एक टीम बनाई है, जो इस परियोजना को शीघ्र पूरा करेगी.
किसानों की आय भी हो सकेगी दो गुनी
एनबीएजीआर, करनाल के निदेशक डॉक्टर बीपी मिश्रा ने कहा कि पशुधन का पंजीकरण कराना बहुत अनिवार्य है क्योंकि इससे देश के किसानों की आय में वृद्धि हो सकेंगी क्योंकि अगर हम पशुओं का वर्गीकरण कर पंजीकरण कर दें तो उस प्रजाति को हम संरक्षित कर सकते हैं. उसके उत्पादों को प्रसिद्ध किया जा सकता हैं. इसके बाद उस पशु का मूल्य बढ़ जाएगा.
दो पशुओं के प्रजाति का हो चुका है पंजीकरण
डॉक्टर बीपी मिश्रा ने कहा कि इस समय देश में 32 केंद्रों में पंजीकरण का कार्य प्रारंभ कर दिया गया है और अगस्त 2021 से अब तक 50 पशुओं की प्रजाति की पहचान की है, जिनका पंजीकरण किया जा सकता है. इनमें से दो पशुओं के प्रजाति का पंजीकरण हो चुका है. पशुओं के पंजीकरण करने से वह क्षेत्र के पशुपालक लाभान्वित होते हैं. उन्होंने कहा कि आईवीआरआई के पास कुशल वैज्ञानिक एवं विषय विशेषज्ञ हैं जो इसके पंजीकरण, आर्थिक प्रबंधन तथा संवर्धन को निपुणता से कर सकेंगे. उन्होने संस्थान निदेशक तथा इस परियोजना से जुड़े सभी वेज्ञानिकों को तय समयावधि में कार्य को पूर्ण करने के लिए आभार प्रकट किया.
रुहेलखंडी गाय में कम लागत में ज्यादा उत्पादन की क्षमता
संस्थान की संयुक्त निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ रुपसी तिवारी ने रुहेलखंडी गाय के महत्त्व को बताते हुए कहा कि यह गाय कम लागत में अधिक उत्पादन देने की क्षमता रखती है. इसलिए इसके अधिक प्रचार-सार तथा इसकी ब्रांडिंग के लिए अलग-अलग ग्रुप व क्लब बना सकते हैं. यह गाय दीर्घकालिक कृषि एवं पशुपालन को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाएगी.
1718 गायों का वर्गीकरण हो चुका
इस नेटवर्क परियोजना के प्रधान अन्वेषक यानी खोजने वाले डॉक्टर अनुज चौहान ने परियोजना की प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए कहा कि यह परियोजना 25 सितम्बर, 2023 को स्वीकृत की गई थी. इसके बाद इस परियोजना को रूहेलखंड क्षेत्र के तहत बरेली, बदायूं तथा पीलीभीत जिले के 14 ब्लॉक तथा 159 गावों में 1718 गायों का वर्गीकरण किया जा चुका है. इसके अतिरिक्त रूहेलखंड क्षेत्र के भेड़ व पोनी के वर्गीकरण का कार्य भी चल रहा है, जिससे भविष्य में इन्हें भी पंजीकृत किया जा सके. डा. अनुज चौहान ने बताया कि संस्थान निदेशक डॉक्टर त्रिवेणी दत्त के दिशानिर्देश में इस परियोजना में संयुक्त निदेशक प्रसार शिक्षा डा. रूपसी तिवारी, डा. बृजेश कुमार, डा. अमित कुमार तथा डा. अयोन तरफदार शामिल हैं.
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