नई दिल्ली. देश में ऐसे कई राज्य हैं, जहां पर गर्मी के दिनों में सूखे जैसे हालत हो जाते हैं. हरा चारा तो गायब ही हो जाता है. जबकि नदी और तालाब भी सूख जाते हैं. ऐसे में पशुओं के लिए पानी तक की समस्या हो जाती है. जबकि जिन पशुपालकों के पास 50 या फिर 100 पशु होते हैं वो अक्सर पशुओं को नहलाने और पानी पिलाने के लिए नदी और तालाब का सहारा लेते हैं लेकिन सूखे की मार की वजह से परेशानी खड़ी हो जाती है. इसके चलते पशुओं को लेकर पलायन करने की स्थिति आ जाती है. जिस वजह से पशुपालन करना मुश्किल हो जाता है.
इस वजह से ऐसे इलाके के लोग पशुओं उन नस्ल को पालने की कोशिश करते हैं जो सूखे में भी खुद को आसानी से ढाल लेते हैं. एक्सपर्ट का कहना है कि यहां कहने का मतलब ये नहीं है कि उन्हें हरे चारे और पानी की जरूरत नहीं होती है, उन्हें भी होती है लेकिन उनका काम कम से भी चल जाता है. वो विपरीत परिस्थिति में भी अच्छा उत्पादन करते हैं. इसी तरह की भैंस की एक नस्ल है, जिसे पंधारपुरी भैंस कहा जाता है. ये सूखे क्षेत्रों के लिए भी बहुत सहनशील पशु माना जाता है. इसलिए अगर पशुपालक इसे पालते हैं तो बेहतर रहेगा.
पंधारपुरी भैंस की क्या है खासियत
पंधारपुरी भैंस के बारे में एक्सपर्ट का कहना है कि मुख्यता ये एक दुधारू नस्ल मानी जाती है. यानी ये डेयरी व्यवसाय के लिए बिल्कुल परफेक्ट नस्ल है. एक्सपर्ट के मुताबिक इस नस्ल की भैंस का औसतन दूध उत्पादन दिन 305 दिनों का होता है. ये भैंस एक ब्यात में 1400 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती है, लेकिन अगर पशुपालक इसे अच्छी खुराक देें और ठीक ढंग से देखभाल करें तो दूध की क्षमता और ज्यादा बढ़ सकती है. बताते चलें कि इस भैंस का दुग्ध काल 350 दिनों माना जाता है.
देश के इस इलाके में पाई जाती है
इस नस्ल को महाराष्ट्र के दक्षिण क्षेत्र का कहा जाता है. ये यहां बड़ी संख्या में पाई जाती है. जिसमें सूखे के प्रति अधिक सहनशीलता होती है. इसका रंग हल्का काला होता है. वहीं कुछ का रंग सलेटी लिए हुए भी होता है. वहीं इसका चेहरा संकरा लम्बा मुख तथा गर्दन चौड़ी व मोटी होती है. इसके सींग लम्बे व पीछे की तरफ कन्धों को छूते हुए होते हैं. इसका शारीरिक आकार मध्यम होता है. पूंछ छोटी व सिरे पर सफ़ेद गुछा होता है. इस भैंस की प्रथम ब्यात पर उम्र 42-44 महीने होती है. वहीं एक ब्यात अन्तराल औसतन 465 दिन का होता है.
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