नई दिल्ली. मछली पालन में जहां तालाब के पानी, खाद आदि पर ध्यान देना होता है. वहीं तालाब में मछलियों की ग्रोथ तेजी से हो, इसके लिए कई जरूरी बातों का ख्याल रखना होता है. जिन तालाब में मछलियों का पालन किया जा चुका है और मछली निकाल ली गई, उसमें फिर से मछली पालन करने के लिए बेहद जरूरी है कि पुरानी और बेकार हो चुकी मछलियों को बाहर निकाल लिया जाए. अगर ऐसा नहीं किया जाता तो कार्प मछलियों को नुकसान होगा. जिसका मतलब ये है कि मछली पालन में फायदे की जगह नुकसान हो जाएगा.
एक्सपर्ट के मुताबिक पुराने तालाब से बेकार छोटी मछलिया जिसमें पोठिया, चंदा, चेल्वा, कोतरी, खैरा एवं परभक्षी मछलियों बोआरी, टेंगरा, गरई, सिंधी होती हैं उन्हें बाहर निकाल दें. ये पाली जाने वाली कार्प मछलियों के जीरे तथा उनके भोजन को खाकर उत्पादन में कमी लाती हैं. आम तौर पर इनको बाहर निकालने के लिए महुआ की खल्ली या ब्लीचिंग पाउडर का इस्तेमाल किया जाता है. इनके असर से मारी हुई मछलियों का सेवन भी किया जा सकता है.
किस तरह करें इसका इस्तेमाल
महुआ की खल्ली का प्रयोग की बात की जाए तो 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से एक मीटर गहरे जल वाले तालाब में किया जाता है. महुए की खल्ली को पानी में भिगोकर तालाब में बराबर से छिड़काव करें. जिससे 6-10 घंटे के अंतराल में मछलियां मरने लगती हैं और पानी की सतह पर आ जाती हैं. इन्हें टाना जाल द्वारा छान लिया जाता है. इसका जहरीला प्रभाव 15-20 दिनों में समाप्त हो जाता है. तथा इसके बाद यह जैविक खाद का काम करती है.
ब्लीचिंग पाउडर भी कर सकते हैं उपयोग
महुए की खल्ली की जगह ब्लीचिंग पाउडर का प्रयोगः 300 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से एक मीटर गहरे जल वाले तालाब में करते हैं. इसके छिड़काव के 3-4 घंटे के अंदर सारी मछलियाँ मर जाती हैं तथा इसका विषैला प्रभाव जल में 7-8 दिनों तक रहता हैं. वहीं बिना पानी वाले अमोनिया का 200-250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से मछलियां मर जाती हैं. इसका जहरीला असर 4-6 सप्ताह तक रहता है. इसकी खासियत ये है कि यह मछलियों के साथ-साथ पानी के अंदर वाले पौधों को भी खत्म कर देती हैं और रासायनिक खाद का भी काम करती है.
पानी क्षारीय होना भी है जरूरी
मछली पालन में एक जरूरी बात ये भी है कि तालाब में जल का थोड़ा क्षारीय होना मछली के वाढ़वार एवं स्वास्थ्य हेतु अच्छा होता है. आमतौर पर भखरा चूना का प्रयोग खाद डालने से 7 दिन पहले यानि जून के प्रथम सप्ताह में करें चूना डालने से पहले जल एवं मिट्टी जांच करायें. जल एवं मिट्टी का पी०एच० मान के अनुसार (अम्लीयता या क्षारीयता का स्तर) चूने का प्रयोग करें. अगर पानी की जांच सम्भव न हो तब भखरा चूना का प्रयोग 2-2.5 क्वि/हे. की दर से जरूर करें.
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