नई दिल्ली. मॉनसून का सीजन शुरू हो गया है. धीरे—धीरे देश के अलग—अलग हिस्सों में बारिश हो रही है. इसी के साथ ही मवेशियों को ज्यादा केयर की जरूरत होगी. क्योंकि बारिश का सीजन भी एक सीजन होता है जब पशुओं के बीमार होने के चांसेज ज्यादा हो जाते हैं. बताते चलें कि जुलाई और अगस्त महीने में एलसीडी यानी लंपी स्किन डिजीज का खतरा पशुओं पर मंडरा रहा है. देश के कई राज्यों के 118 शहरों में इस बीमारी के फैलने का खतरा है. इसलिए जरूरी है कि सावधानियां बरती जाएं. ताकि लंपी रोग से पशुओं को बचाया जा सके.
एलसीडी बीमारी की बात की जाए तो जुलाई के महीने में या बीमारी देश के 68 जिलों में पशुओं में फैल सकती है. जिसमें सबसे ज्यादा गुजरात में 20 और केरल में 10 जिलों में इसका प्रकोप दिखाई देगा. इसके अलावा अन्य राज्यों में इसका असर कम दिखाई देगा. वहीं अगस्त की बात की जाए तो गुजरात के 15 जिलों में केरल के 6 जिलों में इस बीमारी का असर दिखने की संभावना है. देश के कुल 50 शहरों में जानवरों में यह बीमारी फैल सकती है.
बचाओ नियंत्रण का तरीका यहां पढ़ें
बीमारी से ग्रसित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग कर देना चाहिए. जिन गांवों में बीमारी फैली हुई है, वहां बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से के संपर्क में आने से बचना चाहिए. यह बीमारी मच्छर, मक्खियों चिड़िया द्वारा फैलती है. उनके आवास में साइपिमैथिीन, डेल्टामैविन, अवमतिाज़ दवाओं दो मिली प्रति लीटर में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए. बीमारी वाले क्षेत्र से गैर बीमारी वाले क्षेत्र में पशुओं का आवागमन बंद कर देना चाहिए. बीमारी वाले क्षेत्र से गैर बीमारी वाले क्षेत्र में पशुओं को नहीं ले जाना चाहिए. बीमारी फैलने की अवस्था में पशुओं को पशु पशु मेला इत्यादि में नहीं ले जाना चाहिए.
बायो सिक्योरिटी भी है जरूरी
पशुओं के प्रबंध में प्रयुक्त वाहन एवं उपकरण के साफ-सफाई करनी चाहिए. संक्रमित पशुओं की देखभाल में लगे व्यक्तियों को जैव सुरक्षा उपायों जैसे साबुन, सैनेटाइजेशन करना चाहिए. पशुओं के बाड़े में किसी भी अनावश्यक बाहरी व्यक्ति एवं वाहन के प्रवेश पर रोक लगा देनी चाहिए. पशुशाला में नियमित चूना पाउडर का छिड़काव करना चाहिए. पशु आवास में गोबर मूत्र अपनी गंदगी आदि को गत्रित नहीं होने देना चाहिए. पशु के दूध का उपयोग उबालकर करना चाहिए रोगी पशु की संतुलित आहार हरा चारा दलिया गुण आदि खिलाए जिससे कि पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो.
कैसे किया जाए इलाज
उपचार की बात की जाए तो यह एक संक्रामक रोग है, इसलिए इसकी कोई सटीक दवा नहीं है. सर्वप्रथम रोगी पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग कर देना चाहिए. पशु चिकित्सा की सलाह लेनी चाहिए. इससे बचाव के लिए एंटीबायोटिक दवा और बुखार एवं सूजन के लिए एंटीपायरेटिक एंटी इंफ्लामेटरी एवं मल्टीविटामिन दवाएं 4 से 5 दिन तक लगवानी चाहिए. पशु की भूख बढ़ाने के लिए हिमालयन बतीसा पाउडर रुचामेक्स पाउडर आदि हर्बल दावों का प्रयोग किया जाना चाहिए. यदि त्वचा पर जख्म बन जाए तो जख्मो पर नियमित रूप से बीटाडीन एवं एंटीसेप्टिक दवा का स्प्रे करना चाहिए. जख्मों के उपचार के लिए कुछ हर्बल दवाएं टॉपिक्योर, स्कैवोन, चार्मिल, हाइमेक्स आदि बाजार में मिल जाती है.
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