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Rabies: रेबीज के क्या हैं इंसानों और पशुओं में लक्षण, कैसे किया जा सकता है इस पर कंट्रोल, जानें यहां

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नई दिल्ली. रेबीज जिसे लैटिन में ‘पागलपन भी कहा जाता है ये सबसे घातक वायरल जूनोटिक रोगों में से एक है जो इंसानों सहित गर्म खून वाले पशुओं बेहद ही प्रभावित करता है. ये इंसानों और जानवरों के सेंट्रल नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचाता है. यह रेबडोविरिडी परिवार के लाइसावायरस जीनस के न्यूरोट्रोपिक वायरस के कारण होता है. डॉग रेबीज वायरस के मुख्य स्रोत हैं और मानव रेबीज के 99 फीसदी मामले संक्रमित कुत्तों के काटने से होते हैं. इंसानों और जानवरों में लगभग 100 फीसदी मृत्यु दर है. वहीं हर साल लगभग 59,000 लोगों की मौत का कारण रेबीज ही है.

भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान इज्जतनगर बरेली के एक्सपर्ट का कहना है कि ये बीमारी इतनी खतरनाक इसलिए है कि एक बार लक्षण विकसित हो जाए तो इसके बाद रेबीज का कोई प्रभावी उपचार नहीं है और रोग हमेशा घातक होता है. हालांकि कुत्तों की वजह से होने वाले रेबीज के मामले 100 फीसदी तक रोका जा सकता है और इतना ही नहीं कुत्तों को टीके लगाए जाएं तो रेबीज को प्रभावी ढंग से खत्म किया जा सकता है. ये बीमारी संक्रामक लार के संपर्क में आने से, संक्रमित कुत्तों के काटने से होती है.

इंसानों में क्या दिखाई देते हैं लक्षण
सवाल ये है कि इसके क्लीनिकल सिम्प्टम्स क्या-क्या हैं. बता दें कि संक्रमण होने और पहली बार लक्षण दिखाई देने के बीच का समय 2-3 महीने तक हो सकता है. या फिर 2 सप्ताह से 25 वर्ष तक भी हो सकता है. इस बीमारी में शुरू में सामान्य लक्षण जैसे कमजोरी, बुखार, सिरदर्द, उल्टी होती है. वहीं काटने की जगह पर नसों का दर्द या खुजली. पानी से भय लगना भी हो सकता है. वहीं इस दौरान चिंता व भ्रम की अधिकता होती है. इंसानों को नींद भी नहीं आती है. अक्सर 2 सप्ताह के भीतर मृत्यु हो जाती है.

पशुओं में ऐसे दिखते हैं सिम्पटम्स
पशुओं में इसके लक्षण की बात की जाए तो उग्र एवं साइलेंट हो जाते हैं. जीवित और निर्जीव दोनों वस्तुओं को काटने की प्रवृत्ति डेवलप हो जाती है. वहीं अत्यधिक लार गिरना, गतिभंग, कमजोरी, दौरे, फालिज, आक्रामकता, निगलने में कठिनाई होती है. लक्षण दिखाई देने पर 10 दिनों के भीतर मृत्यु हो जाती है. रेबीज निदान के लिए डब्लूएचओ और ओआईई बताए गए टेस्ट है. डायरेक्ट फ्लोरोसेंट एंटीबॉडी टेस्ट कराया जाता है.

नियंत्रण एवं रोकथाम का क्या है तरीका
आवारा कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करना बेहद ही जरूरी कदम में से एक है. वहीं इंसानों और कुत्तों में रेबीज को नियंत्रित करने के लिए स्थानिक क्षेत्रों में कुत्तों का सामूहिक टीकाकरण कराना चाहिए. 70 फीसदी कुत्तों का टीकाकरण करने से स्थानिक क्षेत्र से रेबीज का खत्म किया जा सकता है. पालतू कुत्तों का वार्षिक टीकाकरण करवाएं. पालतू कुत्तों व बिल्लियों को जंगली जानवरों से दूर रखें.

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