नई दिल्ली. पशुपालन में ज्यादा से ज्यादा कमाई के लिए बहुत से किसान भैंस को पालते हैं. वहीं एक्सपर्ट का कहना है कि भैंस के दूध में कुल ठोस वसा, प्रोटीन और विटामिन गाय के दूध में अधिक होते हैं. भैंस के दूध में कैरोटीन की कमी होती है. यही कारण है, कि भैंस का दूध गाय दूध की अपेक्षा अधिक सफेद होता है. एक्सपर्ट कहते हैं कि डेयरी उद्योग के लिए अच्छे दुधारु गुण वाले पशुओ का होना आवश्यक होता है. तभी यह व्यवसाय में ज्यादा से ज्यादा फायदा पहुंचता है. इसके लिए सर्वप्रथम अच्छी भैंसों का चुनाव करना जरुरी होना चाहिए.
कई बार हम बाहरी शरीर देख कर खरीद लाते है, लेकिन ज्यादा दूध उत्पादन में खरे नहीं उतर पाते हैं. कभी कभी देखेने को मिला है, कि कमजोर पशु भी अच्छे संतुलित पोषक युक्त आहार व सही प्रबंधन से अच्छे दुग्ध उत्पादन पर खरे उतरते हैं. इसलिए पशु खरीदते समय कुछ बातो का ध्यान रखना चाहये, तो अच्छे पशु का चुनाव कर सकते है.
मादा की है ये पहचान
मुर्राह भैंस की नस्ल दूध उत्पादन के लिए विश्व में सबसे अच्छी है. यह नस्ल आमतौर दूध व मांस के लिए पाली जाती है, ये तटीय व कम तापमान वाले क्षेत्रों में भी आसानी से रह लेती है. मुर्रा हरियाणा, दिल्ली व पंजाब में पाई जाती है. इसका मिलने का मुख्य स्थल हरियाणा के रोहतक, भिवानी, झज्जर, हिसार एवं जींद जिले हैं. पशु काले, बड़े डील-डोल शरीर वाले होते है, मादा का सिर छोटा, अच्छे नयन नक्स लिए होती है, सांड चौड़े व बड़े वजनी होते हैं, बाल घने व छोटे होते हैं, सींग छोटे कसे हुए मुड़े छल्ले के समान होते है, मादा की आंखे चमकीली होती है. वहीं मादा की गर्दन लम्बी, पतली होती है व नर में मजबूत और मांसल होती है.
नस्ल सुधार भी कर सकते हैं
अगर कमर चौड़ी होती है, पूंछ लम्बी व निचले सिरे पर सफ़ेद काले बालों का गुच्छा होता है. अयन का जुड़ाव मजबूत, नसे उभरी हुयी होती हैं., थन आपस में समान दूरी पर जुड़े होते है और पिछला अयन ज्यादा बड़ा होता है. नर का वजन लगभग 450-800 किग्रा, मादा का लगभग 350-700 किग्रा होता है. पहली बार गर्भधारण की उम्र 920-1,355 दिन, प्रथम ब्यांत उम्र 1,214-1647 दिन होती है. दूध उत्पादन 904-2041 किग्रा, दुग्ध स्रवण काल 254-373 दिन, शुष्क काल 145-274 दिन, वसा 7.3 प्रतिशत होता है. इसका दूध उत्पादन 8 से 10 लीटर प्रतिदिन होता है, जबकि संकर मुर्रा एक दिन में 6 से 8 लीटर दूध देती है. भैंसें जिनकी नस्ल के गुण अभी निर्धारण नहीं हुए है, उनका सुधार भी मुर्राह नस्ल से ही किया जा रहा है. हमारे देश में सभी जगह मुर्राह ग्रेडेड भैंसे हैं, जो की वहां के वातावरण में आसानी से रहकर दूध उत्पादित कर रही हैं.
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