नई दिल्ली. पशुओं का ख्याल मौसम के हिसाब से भी रखा जाता है. गर्मी, बारिश और ठंड में अलग-अलग तरीकों से पशुओं को पाला जाता है. इस दौरान उन्हें खाने-पीने और रहने के आवास का भी ध्यान देना होता है. अगर ऐसा न किया जाए तो फिर पशुओं की सेहत और इसके बाद उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है. इसके चलते पशुओं को आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है. एक्सपर्ट का कहना है कि अगर बात सिर्फ और सिर्फ बारिश के मौसम की जाए तो इस दौरान आहार व्यवस्था करना भी बेहद अहम है. बरसात के मौसम में पशुओं को पर्याप्त हरा चारा उपलब्ध होता है लेकिन ज्यादा खिलाने से दिक्कतें होने लगती हैं.
एक्सपर्ट सलाह देते हैं कि पशुओं को ज्यादा हरा चारा नहीं खिलाना चाहिए, क्योंकि पशुओं को दस्त लगने या पेट खराब होने की संभावना रहती है. हरे चारे के साथ सूखा चारा भी मिलाकर देना चाहिये. यानी केवल पशुओं को हरा चारा नहीं बल्कि संतुलित आहार देना चाहिये. जिसमें सूखा चारा, दाना, खल्ली, चूरी, खनिज मिश्रण और नमक भी मिला होना चाहिये. बारिश के पानी या नमी की वजह से पशुओं के चारे में फफूंद लग सकता है या कड़वापन आ जाता है. इसलिये एक सप्ताह से ज्यादा बना हुआ चारा पशु को नहीं खिलाना चाहिए.
दूध की क्वालिटी पर भी पड़ता है असर
एक्सपर्ट का ये भी कहना है कि बारिश के दिनों में हरे चारे में नमी की मात्रा काफी ज्यादा बढ़ जाती है. बारिश के कारण चारा बिल्कुल तरोताजा नजर आता है. जबकि पशु भी चाव से इस दौरान चारा खाते हैं. अगर पशु जब इस दौरान हरा चारा ज्यादा खाता है तो उसे डायरिया समेत और भी दूसरी बीमारी होने का खतरा बना रहता है. इतना ही नहीं उस चारे में मौजूद नमी के चलते ही दूध की क्वालिटी पर भी असर पड़ता है. दूध की क्वालिटी पर असर का मतलब ये है कि पशुपालकों को इसका सीधा नुकसान झेलना होगा.
पशुओं को पिलाएं साफ पानी
चारे के साथ पानी की भी ठीक से व्यवस्था करनी चाहिये. पशुओं को बरसाती नाले का पानी नहीं पिलाना चाहिये, बल्कि साफ एवं स्वच्छ पानी पिलाना चाहिये. कई बार देखा जाता है कि पशु बारिश का जमा पानी पी लेते हैं. इसके चलते उन्हें परेशानी हो सकती है. ख्याल करें कि पशु कभी भी जमा हुआ और नाले का पानी न पी पाए. एक्सपर्ट कहते हैं कि दूध में पानी की मात्रा बहुत ज्यादा होती है. इसलिए हमेशा ही साफ पानी पिलाना चाहिए.
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