नई दिल्ली. भारत में में सालभर कोई न कोई त्योहार चलता रहता है. त्योहार का मौका हो और मिठाई न हो तो ये हो ही नहीं सकता हैं. यहां तो छोटी—छोटी खुशियों के मौके पर भी लोग एक दूसरे का मुंह मीठा मिठाई से कराते हैं. जिस तरह से श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा में वहां का पेड़ा पूरे रेश में मशहूर है तो वहीं भारत के कई अन्य शहरों में भी पेड़ा बनाया जाता है. ये पेड़े या तो उन शहर के नाम से मशहूर हैं या फिर उनका कुछ और नाम है. बताते चलें कि मथुरा के अलावा अन्य भारतीय पर्यटन शहरों में भी अलग-अलग प्रकार और स्वाद के पेड़े बनाये जाते हैं.
मथुरा के पेड़े की तरह ही कर्नाटक का धारवाड़ पेड़े की लज्जत भी लोगों की जुबां पर है. इसके अलाव भी कई पेड़े हैं, जिन्हें लोग पसंद करते हैं. जबकि सतारा कंडी पेड़े ने अंग्रेजों को भी अपना गुलाम बना लिया था. ये पेड़े अंग्रेजों को बहुत पसंद थे.
धारवाड़ पेड़े के बारे में जानें यहां
यह पेड़ा मथुरा पेड़ा के तरह ही प्रसिद्ध है. इस पेड़े को अपना ‘लीजेंड स्टेटस’ मिला हुआ है. लगभग 175 वर्ष पहले इस पेड़े की पहचान कर्नाटक के धारवाड़ जिले से आई है. धारवाड़ पेड़ा, लगभग मथुरा पेड़े जितना पुराना है। धारवाड पेड़ा को मथुरा पेड़ा की तरह ही जीआई टैग मिला हुआ है. यह पेड़ा भूरे रंग का होता है, जिसकी सतह पर चीनी का पाउडर चढ़ा होता है. जल सक्रियता कम होने के कारण इस पेड़े की शेल्फ लाइफ ज्यादा होती है, जो इस पेड़े को सबसे अलग बनाती है. धारवाड़ पेड़ा का श्रेय ठाकुर परिवार को दिया गया है. इसके पीछे का इतिहास दिलचस्प है. कहा जाता है कि 19वीं शताब्दी की शुरुआत में, जब उत्तर प्रदेश एक घातक महामारी प्लेग की चपेट में था, तब ठाकुर परिवार के कुछ सदस्य उन्नाव से धारवाड़ आये थे. राम रतन सिंह ठाकुर ने इस सिलसिले को पूरा करने के लिए पेड़ा बनाना शुरू किया, जबकि उनके पोते बाबू सिंह ठाकुर ने इस मिठाई को एक सनसनी तक बढ़ा दिया. यह पहले छोटे स्तर पर लोकल मार्केट में बेचा जाता था, लेकिन अब इसका कुछ भाग विदेशों में निर्यात किया जाने लगा है.
सतारा कंडी पेड़ा
यह भारत के इतिहास का एक दिलचस्प पेड़ा है. यह कहानी लगभग 200 साल पुरानी है. शुरुआती ब्रिटिश शासन में ब्रिटिश रेजिमेंट की सतारा में छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्य में तैनाती थी. उन्हें मिठाई खाने की आदत थी और वे हमेशा अलग-अलग मिठाइयों की तलाश में रहते थे. ऐसा कहा जाता है कि किसी ने एक बर्तन में दूध उबाला और उसमें चीनी या गुड़ मिलाया. जब मिश्रण गाढ़ा होता गया, उन्हें छोटी गेंदों में बनाया गया, एक कनस्तर में भर दिया गया और इसे ब्रिटिश अधिकारियों को प्रस्तुत किया गया. अंग्रेजों को यह मिठाई बहुत पसंद आई, इसलिए उन्होंने इसे एक सामान्य नाम “कंडी” कहा, लेकिन सही रूप से यह एक पेड़ा था. यह भी कहा जाता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज के नौवें वंशज द्वारा महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा पर खड़कताल गांव से सतारा तक कन्फेक्शनरों का एक परिवार गया था. उन्होंने जो कंडी बनाई वह लोकप्रिय हो गई. बाद में उन्हें लटकर के नाम से भी जाना जाने लगा. सतारा के कैंडी पेड़ा की गुप्त रेसिपी यह है कि ये पेड़े डबल भुने होते हैं.
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