नई दिल्ली. किसानों केे आर्थिक और सामाजिक विकास में मछली पालन एक अहम भूमिका निभाते आ रहा है. एक्सपर्ट कहते हैं कि आने वाले समय में इसका महत्व और भी बढ़ जाएगा. क्योंकि ये प्रोटीन का बहुत ही सस्ता और अच्छा सोर्स है. किसानों को चाहिए कि मछली पालन में ज्यादा फायदा पाने के लिए सांइटिफिक तरीकों का इस्तेमाल करें. पारंपरिक तरीके से जहां मत्स्य उत्पादन 500-1000 किलो प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष होता है तो वहीं वैज्ञानिक तरीके से इसे किया जाय तो उत्पादन 10 से 12 टन प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष हो सकता है. जबकि इसके लिए बहुत ज्यादा अतिरिक्त खर्च की जरूरत भी नहीं होती है.
एक्सपर्ट कहते हैं कि आज भी मछली फॉर्मर्स मछली पालन पारम्परिक रूप से ही करते हैं और अपने संसाधन की उत्पादकता का पूरा फायदा नहीं उठा पात हैं. ऐसे तो सघन स्तर (Compact Level) से मछली पालन की उत्पादकता बहुत अधिक है पर एक्सपर्ट मछली किसानों को अर्ध सघन (Semi-dense) तरीके से मछली पालन की सलाह देते हैं. अगर मछली पालक अर्द्धसघन तरीके से मत्स्य पालन करेंगे तो उन्हें मछली उत्पादन से आर्थिक फायदा भी मिलेता है और साथ ही साथ पर्यावरण साफ-सुथरा भी रहता है.
ज्यादा उत्पादन मिलता है
एक्सपर्ट के मुताबिक मछली पालन के लिए वैज्ञानिक तरीके अपनाए जाएं तो ज्यादा फायदा लिया जा सकता है. बायोफ्लॉक तकनीक या ओपन नेट पेन तरीका काफी फायदेमंद है. बायोफ्लॉक तकनीक की मदद से टैंकों में मछलियां पाली जाती हैं और वेस्ट को बैक्टीरिया से साफ किया जाता है. इस तकनीक से कम पानी में कम खर्चे में ज्यादा मछलियां पाली जा सकती हैं. इसे बनाने के लिए लोहे की शीट पर लोहे की जाली लगाई जाती है. एक बार बायोफ्लॉक तैयार करने के बाद उसमें लगातार मछलियों को पाला जा सकता है और इससे उत्पादन बेहतर होता है. मछली पालक को फायदा भी ज्यादा होता है.
तेजी से होती है ग्रोथ
एक दूसरे तरीके के मुताबिक नेचुरल पानी तैरते बड़े पिंजरे में मछलियों को पाला जाता है. इसे ओपन नेट पेन तरीका भी कहते हैं. मछलियां प्राकृतिक पानी में रहती हैं लेकिन पानी से अलग नहीं जा पाती हैं. इस तरीके में पानी हर समय इधर से उधर जाता है. पिंजरा तकनीक को केज कल्चर भी कहा जाता है. इसमें मछलियों को पानी के बड़े स्टोरेज वाली जगह जैसे झील, नदी या समुद्र में पिंजरा या केज में पाला जाता है. यह मछली पालन का एक नया तरीका है. मछली पालन के लिए पिंजरे की लंबाई-चौड़ाई और ऊंचाई कम से कम ढाई मीटर रखनी पड़ती है और पिंजरे को ऐसी जगह पर रखा जाता जहां पर पानी की गहराई करीब 5 मीटर हो. इस तरीके से मछली पालन करने पर मछलियों की ग्रोथ जल्दी होती है.
साइंटिफिक तरीके का फायदा
साइंटिफिक तरीके से मछली पालन की बात की जाए तो मछली प्रोडक्शन में जैविक और रासायनिक खाद का इस्तेमाल किया जाता है. वहीं मछली के अधिक उत्पादन के लिए प्राकृतिक भोजन के अलावा कृत्रिम भोजन भी मछलियों को दिया जाता है. टैंक में मछली पालन से फायदा यह है कि अगर आपके पास तालाब नहीं है तो मछली पालन टैंक में कर सकते हैं और हर साल करीब पांच लाख रुपये की कमाई कर सकते हैं.
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