नई दिल्ली. केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान की ओर से पेश की गई टेक्नोलॉजी की मदद से हीट में आने वाली भैंस की सटीक जानकारी का पता चल सकता है. वहीं भैंसों की बीमारी के बारे में भी जानकारी की जा सकती है. गौरतलब है कि संस्थान की ओर से मुर्रा भैंस में अनुवांशिक सुधार में संस्थान की मुख्य भूमिका रही है. पिछले साल इस संस्थान में ढाई लाख से ज्यादा सीमन डोसेज का उत्पादन किया गया तथा 2 लाख के आसपास सीमन डोसेज पशुपालकों को उपलब्ध करवाई गई जिससे पशुपालकों की भैंसे में अनुवांशिक सुधार होगा और दूध में भी अच्छी बढ़ोतरी होगी.
इस संस्थान में लगभग 550 के आसपास कटड़े, कटड़िया, झोटे और भैंसें है. संस्थान में लगभग 130 के करीब दूध वाली भैंस तथा 50 के करीब बन शुष्क क भैसे है. इसमें से 100 के आसपास ऐसी वैसे है जिनका दूध 3000 किलो से ज्यादा है. एक समय था जब संस्थान के पास 2000 किलो वाली पैसे लगभग 66 फीसदी के आसपास थी लेकिन आज इस स्थान के पास ऐसी भैसे सिर्फ दो-तीन परसेंट ही रह गई है. अब इस स्थान के पास 20 से ज्यादा भैसे 4000 किलो ग्राम से अधिक वाली है जिसमें दो भैंसों ने 5000 किलो ग्राम से ज्यादा दूध दिया है.
बढ़ गया है भैंस का दूध उत्पादन
संस्थान का एवरेज दूध उत्पादन प्रति भैंस के हिसाब से 1800 किलोग्राम से बढ़कर 3100 किलोग्राम के आसपास हो गया है जो विश्व में देश का किसी भी ऑर्गेनाइज्ड फॉर्म में सबसे ज्यादा उत्पादन है. स्थापना दिवस के अवसर पर डॉ संजय कुमार अध्यक्ष एग्रीकल्चर साइंटिस्ट रिक्रूटमेंट बोर्ड चीफ गेस्ट रहे तथा वेस्ट बंगाल एनिमल और फिसरी साइंस विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर डॉक्टर तीर्था कुमार दत्ता और एनआरसीई के निदेशक डॉक्टर टी के भट्टाचार्य गेस्ट ऑफ ऑनर रहे. संस्थान के स्थापना दिवस के अवसर पर काफ रैली मैं प्रथम द्वितीय और तृतीय आने वाले पशुपालकों को पुरस्कृत किया गया. यह रैली जेवरा गांव में करवाई गई थी जिसमें 60 के करीब पशुपालकों ने अपने पशुओं का प्रदर्शन किया. संस्थान में किसान गोष्ठी का भी आयोजन किया गया जिसमें नांगला गांव के 40 किसानों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया.
लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हुआ नाम
इस संस्थान ने भैंसे में अनुवांशिक सुधार के साथ-साथ अन्य रिसर्च गतिविधियों में संस्थान का नाम रोशन किया है जिसमें बफेलो क्लोनिंग में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में संस्थान का नाम आया, प्रेगनेंसी डायग्नोस्टिक किट बनाने, पशुओं के द्वारा मीथेन प्रोडक्शन को खान-पान के माध्यम से काम करके उसे ऊर्जा को दुग्ध उत्पादन में लगाना तथा थर्मल इमेजिंग के द्वारा थनैला रोग चेक करना आदि शामिल है. अब एक नई रिसर्च के माध्यम से सेंसर टेक्नोलॉजी डेवलप की जा रही है जिससे पशुओं में किसी भी प्रकार की बीमारी तथा हीट में आने के लक्षण का आसानी से पता लगाया जा सकेगा.
दूध उत्पादन में होगा सुधार
मुख्य अतिथि ने अपने भाषण में साफ और स्वच्छ दूध पैदा करने तथा अल्ट्रा मॉडर्न पैकेजिंग टेक्नोलॉजी पर ध्यान देने की बात कही. उन्होंने कहा कि पशुओं का हाउसिंग सिस्टम इंजीनियरिंग की सहायता से बदला जा सकता है जिससे उनको कंफर्टेबल जोन मिल सके और ज्यादा से ज्यादा पशुओं का उत्पादन बढ़े. उन्होंने कहा कि गांव में दूध उद्योग लगे जिससे मिल्किंग मशीन के माध्यम से साफ सुथरा दूध पशुओं से पैदा किया जाए और किसान भाइयों को दूध का उचित मूल्य मिल सके. संस्थान की शोध गतिविधियों को देखकर मुख्य अतिथि बहुत ही प्रसन्न हुए और शोध से जुड़े सभी वैज्ञानिकों तकनीकी अधिकारियों तथा अन्य स्टाफ को बहुत-बहुत बधाइयां दी. इस अवसर पर डॉक्टर भट्टाचार्य ने भी अनुवांशिक सुधार के लिए वैज्ञानिकों को अच्छी-अच्छी टिप्स दी.
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