नई दिल्ली. बरसीम डेयरी पशुओं के लिए बेहतरीन चारा फसल है. इससे पशुओं को ज्यादा दूध उत्पादन करने में मदद मिलती है. पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI) के एक्सपर्ट के मुताबिक बरसीम के बीज के साथ कासनी के बीज भी मिले होते हैं. इनको अलग करने के लिये 5 प्रतिशत नमक के घोल में बरसीम के बीजों को डालते हैं. कासनी के बीज हल्के होने के कारण घोल के ऊपर तैरने लगते हैं. इनको घोल से अलग करके बीज को साफ पानी से कई बार धोते हैं. अधिक उपज प्राप्त करने के लिए बरसीम के बीजों को राइजोबियम ट्राईफोलाई नामक बैक्टीरिया के कल्चर से उपचारित किया जाता है.
इसके लिए कल्चर को एक लीटर पानी व 100 ग्राम गुड़ के घोल में मिला लिया जाता है. एक हेक्टेयर खेत के लिए प्रयोग होने वाले बीज की मात्रा को इस कल्चर के साथ मिलाकर छाया में सुखाकर 24 घंटे के अन्दर बुवाई कर दी जाती है.
खेती का तरीका क्या है
बरसीम का कल्चर उपलब्ध न होने पर बरसीम के पूर्व खेत की 5-6 से.मी. ऊपरी सतह की 4-5 कुन्तल मिट्टी प्रति हेक्टेयर नये खेत में समान रूप से बिखेर देनी चाहिए.
बीज दर 25-30 कि.ग्रा./हेक्टेक्यर प्रयोग की जाती है. देशी किस्म का बीज छोटा होने के कारण 25 कि.ग्रा. व उन्नत किस्मों का आकार बड़ा होने के कारण 30 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर प्रयोग किया जाता हैं.
शुरू में अधिक उपज लेने के लिए बरसीम के बीज के साथ सरसों या लाही अथवा गोभिया सरसों (2-4 कि.ग्रा.) जई या सैंजी (40-50 कि.ग्रा.) के बीज को भी मिलाकर बोया जाता है.
बोने का समय एवं विधिः बरसीम की बुवाई खेत में 5-7 से.मी. पानी भरने के बाद की जाती है.
इस विधि में खेत में पानी भरकर पटेला द्वारा गंदल कर लिया जाता है फिर छिटकवां विधि से बुवाई कर देते हैं. बुवाई का उत्तम समय अक्टूबर माह है.
खाद एवं उर्वरक कितना डालें
बरसीम की फसल में 30 किलो ग्राम नाइट्रोजन मिलाएं. 60 किलो ग्राम फास्फोरस व 30 किलो ग्राम प्रोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए.
इन खादों की पूरी मात्रा को अन्तिम जुताई के समय खेत में छिड़ककर मिला देना चाहिए. यदि ऐसा करते हैं तो फिर बढ़िया उपज मिलेगी.
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