नई दिल्ली. मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) के तहत अंडमान और निकोबार द्वीप को टूना क्लस्टर बनाने का फैसला किया है. कहा जा रहा है कि इस फैसले से न सिर्फ भारतीय टूना मछली की इंटरनेशनल मार्केट में वैल्यू बढ़ेगी, बल्कि टूना मछली को पकड़ने वाले मछुआरों को भी इसका सीधा फायदा मिलेगा. फिशरीज एक्सपर्ट की मानें तो यह अंडमान और निकोबार द्वीप समूह मछली पालन विकास के लिए एक सुनहरा अवसर है. क्योंकि यहां 6.0 लाख वर्ग किलोमीटर का विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) है.
इस क्षेत्र में कई समुद्री संसाधनों से भरा पड़ा है. वहीं खासतौर पर टूना और टूना जैसी हाई वैल्यू वाली प्रजातियों की मछलियों से ये इलाका भरा पड़ा है. मत्स्य विभाग के अनुमान के मुताबिक करीब 60 हजार मीट्रिक टन यहां पर टूना मछली है. यही वजह है कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को टूना क्लस्टर बनाया गया है. एक्सपर्ट का कहना है कि इससे अर्थव्यवस्था में ग्रोथ, आय में ग्रोथ और देश भर में मत्स्य पालन में संगठित विकास में तेजी आने की उम्मीद है.
क्या होगा कलस्टर बनाने का फायदा
बताते चलें कि कलस्टर बनाने की ये पहल टूना-मछली पकड़ने वाले देशों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देने के लिए एक अहम रोल निभाएगी. वहीं इस पहल से निवेशकों की बैठकों के आयोजन और हितधारकों के लिए एक्सपोजर यात्राओं के साथ-साथ ट्रेनिंग और क्षमता निर्माण कार्यक्रमों को लागू करने जैसे महत्वपूर्ण निवेशों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करेगी. इसके अलावा यह मछली पकड़ने, प्रोसेसिंग और निर्यात कनेक्टिविटी के लिए बुनियादी ढांचे को विकसित करने में मदद करेगा जो संचालन को बेहतर करने और फिशरीज सेक्टर में भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने में मददगार साबित होगा. इससे भविष्य में भारत को भी मालदीव की तरह टूना मछली का इंटरनेशनल मार्केट में अच्छा दाम मिलने लगेगा.
38 हजार करोड़ का हुआ है निवेश
एक्सपर्ट कहते हैं कि मछली पालन क्षेत्र, भारत की अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख हिस्सा है जो राष्ट्रीय आय, निर्यात और फूड सेफ्टी को बढ़ाने में एक अहम भूमिका निभाता है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों को ये ज्यादा फायदा पहुंचाता है. पिछले एक दशक में, भारत सरकार ने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई), मत्स्य पालन और जलीय कृषि अवसंरचना विकास कोष (एफआईडीएफ) और 2015 से 38 हजार 572 करोड़ रुपये के निवेश के साथ नीली क्रांति जैसी प्रमुख पहलों के माध्यम से इस क्षेत्र के परिवर्तन का नेतृत्व किया है. क्षेत्रीय विकास की गति को जारी रखने के लिए मत्स्य पालन विभाग मत्स्य पालन और जलीय कृषि में एंड-टू-एंड मूल्य श्रृंखला के साथ उत्पादन और प्रोसेसिंग मछली पालन क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण को अपनाने पर अपने प्रयासों को ओर बढ़ा रहा है.
इस क्षेत्रों में कलस्टर विकास पर है फोकस
मत्स्य विभाग ने प्रमुख क्षेत्रों में क्लस्टर विकास पर फोकस किया है. जिसमें मोती, समुद्री शैवाल और सजावटी मछली पालन, जलाशय मछली पालन, मछली पकड़ने के बंदरगाह, खारे पानी की जलीय कृषि, ठंडे पानी की मछली पालन, समुद्री पिंजरा कल्चर, मीठे पानी और खारे पानी की मछली पालन, गहरे समुद्र और महासागरीय मछली पालन, जैविक मछली पालन, वेटलैंड फिश फार्मिंग आदि शामिल है. मछली पालन, उत्पादन रुझान, निर्यात आय, मछली पकड़ने वाली नौकाओं की संख्या, मत्स्य पालन गतिविधियों में भागीदारी और मौजूदा मत्स्य पालन बुनियादी ढांचा सुविधाओं जैसे कुछ पैरामीटर के आधार पर राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ संभावित क्लस्टर स्थानों की पहचान की जा रही है. मत्स्य विभाग ने पहले ही विकास के लिए प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के रूप में तीन स्थानों की पहचान की है.
Leave a comment