नई दिल्ली. कुछ लोगों का मानना है कि सर्दी और बारिश में ही पशुओं को निमोनिया हो सकता है. लेकिन भीषण गर्मी में भी जानवर को निमोनिया जैसी घातक बीमारी हो सकती है. पशु चिकित्सकों की मानें तो निमोनिया जैसे बीमारी में भी कई बार पशुओं की जान तक चली जाती है. इसलिए ये बेहद जरूरी है कि जब गर्मी शुरू हो जाए तो पशुपालकों को अपने पशुओं पर ध्यान देना चाहिए, जिससे पशु बीमार न हों.
ज्यादातर पशुओं को खूंटे पर बांधकर ही पाला जाता है. ये बात सच है लेकिन लापरवाही की वजह से बिना बाहर जाए ही पशु बीमार भी हो जाते हैं. कभी-कभी बड़ी लापरवाही के कारण पशुओं से हाथ भी धोना पड़ता है. जिससे किसान या पशुपालक को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. कुछ किसान या पशुपालक सोचते हैं कि जानवर को गर्मी के मौसम में निमोनिया नहीं हो सकता लेकिन ऐसा सोचना पूरी तरह से गलत है. निमोनिया की वजह से दुधारू पशुओं का दूध भी कम हो जाता है. सबसे ज्यादा नुकसान पशुओं के बच्चों को होता है.
लापरवाही बरती तो चपेट में आ सकते हैं पशु
भारत में जब भी मौसम बदलता है तो आम इंसान से लेकर पशुओं को भी बीमार कर देता है. उदाहरण के तौर पर जब अचानक मौसम बदलता है तो पशु कभी-कभी अपने आपको उस मौसम के हिसाब से ढाल नहीं पाते और वे निमोनिया की चपेट में आ जाते हैं. पशुओं को बुखार आने लगता है, नाक बहने लगती और सांस लेने में दिक्कत शुरू हो जाती है. कभी-कभी तो ये निमोनिया पशुओं की मौत का भी कारण भी बन जाता है. पशुपालकों को चाहिए कि अगर पशुओं में ये लक्षण दिखने लगे तो फौरन पशुचिकित्सक से संपर्क कर उनका इलाज कराएं.
निमोनिया होता है बेहद घातक
निमोनिया को पीपीआर रोग भी कहते हैं. कुछ लोग इस रोग को फेफड़े का रोग भी कहते हैं. इससे पशुओं में श्वास लेने में दिक्कत हो जाती है. इस बीमारी में पशुओं के फेफड़े तंत्र में सूजन आ जाती है, जिससे उन्हें श्वास लेना मुश्किल हो जाता है. इस बीमारी के कारण पशुओं व उनके बच्चों में मृत्युदर अधिक होती है. अगर इन पशुओं में ये बीमारी है तो एंटीबायोटिक उपचार से इसका निदान किया जा सकता है. वायरस जनित रोग में एंटीबायोटिक देने पर दूसरे सामान्य जीवाणुओं को बढ़ने से रोका जा सकता है.
धूप में बाहर न निकाले और आवास में भी कर दें बदलाव
डॉक्टर राजेंद्र पाराशर बताते हैं कि जब भी मौसम बदले पशुपालक खुद को अलर्ट मोड पर रखें और जैसे ही जानवर में कुछ बदलाव दिखे तो फौरन डॉक्टर से संपर्क करें. गर्मी का आगाज होते ही सबसे पशुपालक अपने पशु बाड़े में बदलाव करना शुरू कर दें. शेड को इस तरह ये ढक दें, जिससे गर्म हवा न पहुंच पाए. दूसरा उपाय है कि दोपहर को एक से चार बजे तब पशुओं को बिल्कुल भी चराने के लिए बाहर न ले जाएं. अगर पशु को चराने के लिए बाहर ले गए हैं और धूप से आते ही आपने उसे ठंडा पानी पिला दिया तो उसे निमोनिया होने की पूरी आशंका है. इसलिए कोशिश करें कि उन्हें शेड में ही चारा खिलाएं. पशुपालक प्रयास करें कि गर्मी के दौरान पशुओं को क्षमता के हिसाब से न्यूट्रिशन दें. इस बीमारी से बचने के लिए पशुओं के आवास व वातावरण का उचित प्रबंध और पूर्ण आहार देने से इस बीमारी की आशंका कम हो सकती है. बीमार पशुओं को अलग रखकर उपचार करना चाहिए.
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