नई दिल्ली. बाजरा आमतौर पर कम बारिश और कम उर्वरता वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है. बाजरे में सूखा सहन करने की ताकत ज्वार की तुलना में अधिक होती है. इसकी खेती 150 से 500 मिमी वार्षिक बारिश वाले क्षेत्रों में आसानी के साथ की जाती है. भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI) के मुताबिक उन्नत प्रजातियों में जायन्ट बाजरा, यू जे- एम. टी.एन.एस.सी-1, एफ.एम.एच. और एच.बी.-1,3,4 है. इसके लिए उपयुक्त महाराष्ट्र एवं मध्य भारत का क्षेत्र है. मुकम्मल कटाई पर एक एकड़ में 40-50 टन चारा आसानी के साथ मिल जाता है.
बाजारा लगाने के लिए खेत में यदि उपयुक्त नमी न हो तो पलेवा कर एक गहरी जुताई मिट्टी पलट हल से करते हैं. इसके बाद 2-3 जुताईयां हैरो से कर खेत को बुवाई के लिये तैयार करना चाहिए. नमी संरक्षित रखने के लिये हर जुताई के बाद पाटा लगा देना चाहिए.
बीज दर की बात करें तो बाजरे की चारा फसल के लिये बीज दर 15 से 20 कि.ग्रा. प्रति हेक्ट. रखनी चाहिए.
चारा फसल के लिये बाजरे की बुवाई आमतौर पर छिटकवां विधि से ही की जाती है. उत्तर भारत में इसकी बुवाई मार्च से अगस्त तथा दक्षिण भारत में फरवरी से नवम्बर तक कर सकते हैं.
खाद एवं उर्वरक कितना डालें
बाजरे की अच्छी उपज के लिये खेत की तैयारी से पहले गोबर की खाद खेत में मिलानी चाहिये. इसके अलावा 50 किलो ग्राम नाइट्रोजन, 40 किलो ग्राम फास्फोरस और 30 किलो ग्राम पोटाश का प्रयोग करना चाहिए.
इसमें से 1 बंटा 3 नाइट्रोजन, पूरी फास्फोरस तथा पोटाश बुवाई के समय ही खेत में मिला देनी चाहिए. नाइट्रोजन की शेष मात्रा एक यो दो बार में सिंचाई के बाद टाप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए.
सिंचाई एवं निराई गुड़ाईः
गर्मी में फसल में 3-4 सिंचाईयों की आवश्यकता पड़ती है. बारिश में फसल में आमतौर पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है.
अधिक खरपतवार होने की दशा में फसल में एट्राजिन रसायन का एक किलो ग्राम सक्रिय तत्व 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर अंकुरण से पूर्व प्रति हेक्टेयर खेत में छिड़कने से खरपतवारों का नियन्त्रण होता है.
कटाई तथा उपजः
चारे के लिये बाजरे की अच्छी फसल से औसतन 50-60 टन हेक्ट. हरे चारे की उपज हो जाती है. इसकी कटाई का उपयुक्त समय बुवाई के 50-55 दिन बाद होता है.
Leave a comment