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Animal Husbandry: डिलीवरी के दौरान पशुओं को होती है ये परेशानियां, क्या करें पशुपालक, पढ़ें यहां

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प्रतीकात्मक फोटो.

नई दिल्ली. पशुओं को भी उसी तरह देखरेख की जरूरत होती है, जिस तरह से इंसानों की जाती है. अगर अच्छे ढंग से देखरेख कर दी जाए तो फिर पशुओं की सेहत अच्छी रहती है और इससे पशुपालकों को भी फायदा होगा. अब अगर पशुओं के प्रेग्नेंसी के दौरान भी कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इससे निजात दिलाना बेहद ही जरूरी होता है. मसलन पशुओं के साथ ये दिक्कत होती है. इस दौरान बच्चा बाहर नहीं निकल पाता. फिर समस्या ये होती है कि इसे कैसे निकाला जाए. इस बात की जानकारी पशुपालकों को होनी चाहिए.

एनिमल एक्पर्ट का कहना है कि अपरा उस कंडीशन को कहते हैं जब बच्चा बाहर नहीं निकलता है. दिक्कत ये होती है कि इसमें 4-6 घंटे तक का वक्त लग जाता है. कई बार तो ये बड़ी समस्या बन जाता है और लगभग 24 घंटों के बाद ही बच्चे को जबरदस्ती बाहर निकालने की कोशिश की जाती है. हालांकि इसमें सावधानी बरतने की जरूरत होती है. इसमें एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करना चाहिए.

डिसइंफेक्शन करना भी है बेहद जरूरी
यूट्रेस में वजाइना का बाहर निकलना इनमें से दोनों या एक अंग बाहर निकल जाता है. इन अंगों को अन्दर डालने के लिये हाथों को डिसइंफेक्शन कर सावधानी से डालना चाहिए. पीछे की टांगों को ऊंचा करना चाहिये. बाहर आये अंगों को हल्के एक्रिफ्लेविन या पोटेशियम परमंगनेट के घोल से वगैरह रगड़कर धोना चाहिये. पशु चिकित्सक मदद लेना भी बेहद ही अहम होता है. इससे कोई ​भी दिक्कत होती है तो पशु चिकित्सक विपरीत परिस्थिति को संभाल सकता है. वहीं चिकित्सक होने की स्थिति में इन अंगों को धीरे-धीरे मुट्ठी से अन्दर धकेलना चाहिये. इनको दोबारा बाहर निकलने से बचाने के लिये एक मजबूत और मोटी शीशे की बोतल को वजाइना के मुंह अन्दर डालना चाहिये.

एंटीसेप्टिक घोल और डिटौल से धुलें
बोतल का निचला हिस्सा अन्दर की ओर होना चाहिये. चार लम्बी रस्सियों से बोतल की गर्दन को जानवर के शरीर से बांध देना चाहिये. लेबर पेन का मतलब कि प्रसव के समय बच्चे के बाहर आने में कठिनाई होना है. बच्चा पैदा के समय होने वाली कठिनाई के दौरान सावधानी के साथ प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध कराई जानी चाहिए. यह साफा किया जाय कि नाखून कटे हों, हाथ, प्रसव की रस्सियों, जंजीरे और हुक किसी एंटीसेप्टिक घोल जैसे डिटौल में धुले हों. नार्मल डिलीवरी पेन से सम्बन्धी परेशानियों जैसे कि टांगों का मुड़ना आदि तक ही सीमित रहना चाहिये और विपरीत परिस्थितियों में पशु चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिये. इससे काफी फायदा मिलेगा.

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