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Buffalo Meat: ज्यादा मीट उत्पादन के लिए ऐसे तैयार की जा रही हैं भैंस

अगर बात करें बफैलो मीट की तो देश में इसे भी बड़े पैमाने पर पंसद किया जाता है.
भैंस की प्रतीकात्मक तस्वीर।

नई दिल्ली. मीट उत्पादन दिन व दिन बढ़ता जा रहा है. देश में मीट खाने वालों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है. भारत में तकरीबन 75 फीसदी से अधिक लोग मीट का सेवन करते हैं. हालांकि इस संख्या में ज्यादातर लोग चिकन मीट खाते हैं. तकरीबन 52 फीसदी से ज्यादा लोग चिकन खाते हैं. जबकि बाकी के लोग बफैलो, बकरी और भेड़ का मीट भी खाते हैं. देश में सबसे ज्यादा खाए जाने वाली मीट में दूसरे स्थान पर बफैलो का मीट आता है. जबकि बकरी का मीट तीसरे और चौथे नंबर पर भेड़ का मीट है. भैंस के मांस का बड़ा बाजार है. भैंस का मांस काफी लोगों को पसंद है. भैंस को पशुपालक काफी बेहतर तरीके से पालते हैं, कारण है कि दूध बेचकर काफी घरों का गुजारा भी चलता है.

अगर बात करें बफैलो मीट की तो देश में इसे भी बड़े पैमाने पर पंसद किया जाता है. एक बड़ी आबादी बफैलो मीट का सेवन करती है. जिसके लिए देश में हर साल तकरीबन डेढ़ करोड़ बफैलो को स्लाटर हाउस में हलाल किया जाता है. जिसका मीट देश में और विदेशों में भी खाया जाता है. क्योंकि भारत से कई देशों में बफैलो मीट को एक्सपोर्ट भी किया जाता है. भैंस के मांस की मांगना केवल अपने देश में बल्कि चीन भारत देश में बढ़ती जा रही है देश-विदेश में इस प्रति मांग को देखते हुए भैंसों की मांसपेशी बढ़ाने की दिशा में कदम बढ़ाए गए हैं.

किए जा रहे है ये प्रयोगः मसल रोकने वाली जीन को डबल मसल मास्क प्रोडक्शन प्रोजेक्ट का आधार बनाया गया है. अभी एक भैंस पर प्रयोग किया गया है. बाहर तैयार किए हुए भ्रूण से मायोस्टेटिन जीन को भैंस में ट्रांसफर कर दिया. इससे भैंस अब गर्भस्थ है. जब भैंस का बच्चा पैदा होगा तब जाकर पता चलेगा कि भैंस की मांसपेशी में कितना ग्रोथ हुआ है. वैज्ञानिकों का दावा है की डबल मसल मांस के लिए चल रही रिसर्च काफी मददगार होगी. यह तीन साल तक चलेगी. इस रिसर्च से भैंस का मांस खाने वाले 8 करोड लोगों को फायदा होगा, साथ ही विश्व बाजार में भैंस के निर्यात को और बढ़ावा मिलेगा. हरियाणा में इस समय करीब 44 लाख भैंस हैं.

इस तरह बढ़ेगी भैंस की मांसपेशीः हिसार के केंद्रीय भैंस अनुसंधान केंद्र में मांसपेशी बढ़े इसको लेकर बच्चा पैदा होने के समय ही जीन को डीएनए को बाहर निकालना होगा. बच्चे के पैदा होने के बाद उस जीन को नहीं निकाला जा सकता है और वह सामान्य रूप से ही पलेगा. सीआईआरवी की तरफ से इस जीन को डीएनए से काटकर अलग किया जाएगा. यह प्रोसेस जेनेटिक इंजीनियरिंग का हिस्सा है.

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