नई दिल्ली. भैंसों का थर्मोरेगुलेटरी सिस्टम खराब होता है और वे विशेष रूप से गर्मियों में एक्सट्रीम क्लाइमेट परिस्थितियों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं. भैंस अपने काले शरीर के रंग के कारण अन्य मवेशियों की तुलना में सन रेडिएशन के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं, जो गर्मी सोखने के लिए अनुकूल है. स्किन के प्रति इकाई क्षेत्र में पसीने की ग्रंथियों की अपेक्षाकृत कम संख्या और त्वचा की मोटी एपिडर्मल परत के कारण गर्मी भैंस को नुकसान पहुंचाती है. जबकि जानवरों द्वारा होमोथर्मी बनाए रखने के लिए पर्याप्त गर्मी को न झेल पाने में गर्मी में काफी तनाव हो जाता है.
गर्मी के कारण हो जाता है तनाव
उच्च वायु तापमान, उच्च आर्द्रता, सन रेडिएशन, कम वायु गति और गर्मी जानवरों में गर्मी के तनाव में इजाफा कर देती है. शरीर का तापमान, नाड़ी की दर और श्वसन दर तीन शारीरिक प्रतिक्रियाएं हैं. जिन्हें तनाव और आराम की जलवायु परिस्थितियों के सूचकांक के रूप में माना जाता है. अत्यधिक गर्म जलवायु के दौरान भैंसों को उचित आश्रय और नियंत्रित वातावरण प्रदान करने की आवश्यकता होती है ताकि उन्हें ज्यादा गर्मी के कारण होने वाले तनाव से बचाया जा सके.
दूध उत्पादन में हो जाती है कमी
भैंसों के लगातार हाई एंबेंट के तापमान के संपर्क में रहने से उनकी शारीरिक प्रतिक्रिया बढ़ जाती है. यदि उन्हें आरामदायक आश्रय, चहारदीवारी या शॉवर उपलब्ध नहीं कराया जाता है, तो भैंस खाना खाना कम कर देती हैं. तो उनके भोजन का सेवन कम हो सकता है. जिसके चलते विकास दर कम हो सकती है. शरीर के वजन में कमी हो सकती है और दूध उत्पादन में गिरावट हो सकती है.
ठंड के समय ज्यादा खाते हैं पशु
गर्मियों में रात के समय हरा चारा खिलाने से बछियों की वृद्धि दर और भैंसों में दूध उत्पादन बढ़ता है. क्योंकि पशु ठंड के समय खाने में अधिक समय बिताते हैं और अधिक शुष्क पदार्थ खाते हैं. जबकि पशुओं के आराम क्षेत्र के दोनों ओर तापमान में 8° से 10°C से अधिक परिवर्तन दूध उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है. इसलिए, भैंसों के उत्पादन और प्रजनन प्रदर्शन में सुधार के लिए, थर्मल आराम प्रदान करने के लिए उपयुक्त आश्रय प्रबंधन आवश्यक है.
Leave a comment