नई दिल्ली. पोल्ट्री फार्मिंग में ऐसी कई बीमारि हैं, जिनकी वजह से प्रोडक्टशन पर असर पड़ता है. या प्रोडक्शन बिल्कुल ही कम हो जाता है. ऐसी बीमारियों से मुर्गियों को बचाने की जरूरत होती है. वरना पोल्ट्री फार्मिंग में नुकसान होने लग जाता है. जबकि बीमारी की वजह से अन्य हैल्दी मुर्गियों में बीमारी लगने का खतरा रहता है. इसके चलते भी पोल्ट्री फार्मिंग पर खतरा मंडराता रहता है. अगर आप चाहते हैं कि मुर्गी पालन से ज्यादा से ज्यादा फायदा हो तो मुर्गियों को बीमारी से बचाएं. इसके लिए ये जरूरी है आपको मुर्गियों की तमाम बीमारियों की पहले से जानकारी रहे. ऐसा होने से तुरंत इलाज संभव है.
कॉक्सीडियोसिस एक एक पक्षी से दूसरे पक्षी में फैलने वाला रोग है. ये संक्रमित मल से फीड, पानी आदि से फैलती है. इस वजह से पोल्ट्री फार्मिंग में हमेशा ही इन बातों का ख्याल रखें कि बीमारी के लक्षण दिखते ही हैल्दी और बीमारी मुर्गियों को अलग-अलग कर दें. बताते चलें कि कॉक्सीडियोसिस एक प्रोटोजोआ जनित रोग है, जिसके कारण चूजों में ज्यादा मृत्युदर देखी जाती है. जबकि अंडा देने की अवस्था और व्यस्क मुर्गियों में अंडा देने की क्षमता में कमी आती है. जिसका सीधा सा मतलब है कि पोल्ट्री फार्मिंग में नुकसान हो जाएगा. इस बीमारी के नौ प्रकार हैं, आपको यहां दो की जानकरी दी जा रही है.
बीमारी के बारे में यहां पढ़ें
सीकल कॉक्सीडियोसिस यह रोग 2-4 सप्ताह की उम्र के चूजों को अधिक होता है. इस बीमारी के होने का कारण आइमेरिया टेनेला नाम प्रोटोजोआ है.
लक्षण
मुर्गियों को भूख ही नहीं लगती है.
मुर्गियों को बार—बार प्यास लगती है.
बार—बार ऊंघने जैसी स्थिति दिखती है.
खूनी दस्त और सीकम खून से भरा होता है.
मृत्यु दर ज्यादा होती है.
आंतों की कॉक्सीडियोसिस: यह रोग 4 से 10 सप्ताह वाले चूजों को होता है, लेकिन सभी उम्र की मुर्गियों में यह हो सकता है. इस रोग का कारण आइमेरिया नेकट्रक्स प्रोटोजोआ है.
लक्षण
प्रभावित चूजों को अधिक प्यास लगती है.
उनकी भूख में कमी हो जाती है.
चूजों की आंखें बंद तथा ऊंघने की शिकायत रहती है.
पीला या खूनी दस्त होने लग जाता है.
बीट करने में बेहद ही तकलीफ होती है.
चूजे कमजोर हो जाते हैं.
मृतक पक्षी की आंत में खूनी धब्बे पाये जाते हैं.
कमजोर तथा पैर अयोग्य हो जाते हैं.
रोकथाम इस तरह करें
डीप लीटर तरीके से बिछावन को हमेशा ही सूखा रखें. यदि बिछावन गीला हो जाये तो उसे तुरन्त हटा दें. बिछावन को सप्ताह में दो बार अवश्य पलटी कर दें. बाहा परजीवियों को नियंत्रित रखें. कॉक्सीडिओसिस रोग की जानकारी मिलने पर तुरुन्त पशु चिकित्सक की सलाह से उपचार करें.
Leave a comment