नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश दूध उत्पादन के मामले में देश में नंबर वन है. इसमें हर साल वृद्धि हो रही है. साल 2024-2025 में यूपी का दूध उत्पादन 3.97 एलएलपीडी (लाख लीटर प्रतिदिन) रहा है. यह पिछले साल की तुलना में करीब 10 फीसद अधिक है. सरकार दुग्ध समितियों की संख्या बढ़ा रही है. साथ ही उनकी बुनियादी सुविधाओं को भी बेहतर बना रही है. समिति के लोगों को पशुओं के बेहतर देखरेख के बाबत लगातार प्रशिक्षण भी दिया जा रहा. अधिकारियों का कहना है कि आने वाले समय में दूध उत्पादन में और ज्यादा इजाफा होगा और इसमें सबसे बड़ी भूमिका सेक्सड शॉर्टेड सीमेन योजना की होगी. इस योजना से न केवल दूध का उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि निराश्रित गोवंश की समस्या से भी काफी हद तक किसानों को निजात मिलेगी.
यही नहीं खेती के यंत्रीकरण के कारण गोवंश के जो नर संतति (बछड़े) अनुपयोगी होकर निराश्रित होने को मजबूर हैं उनका भी मुंहमांगा दाम मिलेगा. सेक्सड शॉर्टेड सीमेन तकनीक से उत्पन्न बछिया चूंकि उन्नत प्रजाति की होगी, लिहाजा पशुपालक इनको छुट्टा छोड़ने की जगह सहेजकर रखेंगे. योगी सरकार इसके लिए मिशन मिलियन सेक्सड आर्टिफिशियल इंसिमिनेशन (एआई/कृत्रिम गर्भाधान) कार्यक्रम चला रही है. इस मिशन के तहत मार्च 2025 तक 10 लाख स्वस्थ्य गोवंश के एआई का लक्ष्य रखा गया था.
क्या है सेक्सड सॉर्टेड सीमेन तकनीक
सेक्सड सॉर्टेड सीमेन आर्टिफिशियल इंसिमिनेशन (एआई) एक अत्याधुनिक तकनीक है. इस तकनीक के जरिये जिस गोवंश का कृत्रिम गर्भाधान किया जाता है वह गोवंश बछिया ही जनेगी, इसकी संभावना 90 फीसद या इससे अधिक होती है. सेंट्रल एनीमल ब्रीडिंग इंस्टीट्यूट के पशु चिकित्सक डा. संजीव श्रीवास्तव के अनुसार नर पशु के शुक्राणुओं का वजन उनकी सक्रियता के आधार पर अलग-अलग होता है. सक्रिय शुक्राणु कुछ भारी होते हैं. स्पर्मेटोजोआ तकनीक से वजन के अनुसार सक्रिय शुक्राणुओं को अलग-अगल कर लिया जाता है. इसके बाद जब इनको एक खास मशीन पर रखा जाता है तो सक्रिय एक्स और वाई क्रोमोजोम के शुक्राणु अलग-अलग हो जाते हैं. इनको हिमीकृत वीर्य तकनीक से अलग-अलग संरक्षित कर लेते है. इनके जरिये ही कृत्रिम गर्भाधान से इच्छानुसार संतति पैदा करना संभव है. परंपरागत तरीके या प्राकृतिक प्रजनन से पैदा होने वाले नर और मादा संतति का अनुपात 50-50 फीसद का होता है. नयी तकनीक से बछिया ही पैदा होगी, इसकी संभावना 90 फीसद से अधिक होती है. इसके प्रयोग से कुछ वर्षो में ही मादाओं की संख्या बढ़ाकर दूध का उत्पादन दोगुना करना संभव है.
दूध उत्पादन में होगा इजाफा, ये भी होगा फायदा
इस तकनीक के भविष्य में कई लाभ होंगे. इस तकनीक से एआई के लिए स्वस्थ्य पशुओं का ही चयन किया जाता है. जिस सांड के शुक्राणु से एआई की जाती है उसकी पूरी वंशावली भी पता होगी. ऐसे में पैदा होने वाली बछिया अपने माता-पिता से प्राप्त गुणों के कारण अच्छी नस्ल की होती है. इससे दो से तीन साल में दूध उत्पादन में अच्छी-खासी वृद्धि संभव है. इसी क्रम में बछड़े कम पैदा होंगे. जो पैदा होंगे उनकी भी प्रजाति बेहतर होगी. लिहाजा प्रजनन संबंधी जरूरतों के लिए उनकी पूछ और दाम दोनों बढेंगे. एक तरह से यह निराश्रित गोवंश की समस्या के स्थायी हल की ओर बड़ा कदम है.
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