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Animal News: पशुपालन के लिए सरकार कर रही है ये तीन अहम काम, मिल रहा है पशुपालकों को फायदा

गर्मी में खासतौर पर भैंस जिसकी चमड़ी काली होती है और सूरज की रोशनी का असर उसपर ज्यादा होता है.
प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली. पशुपालन के काम में सबसे बड़ा नुकसान पशुओं की बीमारियों की वजह से होता है. अगर पशु बीमार हो जाते हैं तो सबसे पहला असर उनके उत्पादन पर पड़ता है. इससे डेयरी फार्मिंग के काम में नुकसान होने लगता है. वहीं दूसरा नुकसान उनकी सेहत के खराब होने की वजह से होता है. अगर सेहत में खराबी आ गई तो फिर पशुपालकों को नुकसान होने लग जाता है. उनके इलाज में हजारों रुपए लगाने होते हैं तब जाकर मामला सही होता है. इसके चलते पशुओं पशुपालन की लागत में इजाफा होता है.

एक्सपर्ट का कहना है कि पशुपालन में अगर पशुओं की मौत हो जाए तो इससे पशुपालकों को भारी नुकसान होता है. बता दें कि सरकार पशुओं को बीमारियों से बचाने के लिए कई योजनाएं चला रही है. इसके अलावा भी पशुपालकों को फायदा पहुंचाने के लिए कई अहम काम किए जा रहे हें.

इस बीमारी को नियंत्रित करना है बेहद जरूरी
नेशनल प्रोजेक्ट ऑन रिण्डरपेस्ट सर्विलांस एंड मानीटरिंग (एनपीआरएसएम) सरकार की ओर से फिर से चलाई गई योजना है. भारत सरकार द्वारा प्रदेश को पोकनी रोग से मुक्त घोषित किया गया है लेकिन पूरे प्रदेश में “रिंडरपेस्ट” जैसी खतरनाक बीमारी का फिर प्रकोप न होने के उद्देश्य से रूट सर्च एवं बिलेज सर्च का कार्य किया जा रहा है. जिसके तहत रोग से ग्रस्त सम्भावित पशुओं को डे-बुक रजिस्टर में दर्ज करना तथा पशुओं पर व्यापक निगरानी रखने का कार्यक्रम चलाया जा रहा है. आरपी रोग इस समय में नही है, लेकिन यह रोग वायरस द्वारा फैलने वाला बहुत ही भयानक रोग है. जिसके दोबारा फैलने की संभावना हमेशा ही बनी रहती है. इसलिए इसपर नियंत्रण रखना जरूरी होता है.

बीमारी के रोकथाम के लिए हो रहे हैं काम
रोग नियंत्रण सम्बन्धी सभी कार्यक्रमों के अहम बिन्दुओं को पहचान कर वार्षिक, त्रैमासिक तथा मासिक लक्ष्यों को निर्धारित कर इसकी समीक्षा, मूल्यांकन तथा कार्यक्रम में आने वाली कठिनाइयों को कम करने के लिए त्वरित प्रभावी कार्रवाई की जानी चाहिए. पशु चिकित्सा एवं स्वास्थ्य संबंधी तथा पशुओ में बीमारी के रोकथाम संबंधी कार्यक्रमों को पशुपालकों में लोकप्रिय बनाने तथा उन्हें आधुनिकतम जानकारी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से पशुपालन प्रचार-प्रसार को और मजबूत किया जा रहा है.

जैविक खाद को दिया जा रहा है बढ़ावा
कृषि कार्य में रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से भूमि की उर्वरता शक्ति लगातार घटती जा रही है. जिससे उत्पादन भी प्रभावित है. कृषि उपज में वृद्धि लाने, भूमि की उर्वरता शक्ति को बरकरार रखने एवं पौष्टिक खाद्यान्न पैदा करने हेतु पशुपालन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. पशुपालन से जैविक खाद की उपलब्धता इसके उपयोग से कृषि योग्य भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी तथा पशुओं से प्रचुर मात्रा में दुग्ध तथा दुग्ध-पदार्थों की उपलब्धता भी होगी. विभाग द्वारा जनमानस में प्रचार-प्रसार, कृषकों एवं पशुपालकों को सामयिक जानकारी उपलब्ध कराने हेतु वर्तमान रणनीति के साथ-साथ समय की मांग/क्षेत्र विशेष की भौगोलिक स्थिति के अनुरूप योजनाओं को तैयार करने हेतु रणनीति भी तैयार की जा रही है.

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