नई दिल्ली. हर पशुपालक चाहता है कि उसे पशुपालन में ज्यादा से ज्यादा फायदा मिले और उसकी अच्छी कमाई हो. हालांकि इसके लिए जरूरी है कि पशु ज्यादा उत्पादन करे. एक्सपर्ट कहते हैं कि उत्पादन तब अच्छा होगा, जब पशु स्वस्थ होंगे. चाहे गाय-भैंस हो या फिर भेड़-बकरी इनको बीमारियों से बचाना बेहद ही जरूरी होता है. अगर पशु बीमार पड़ जाते हैं तो उनका उत्पादन कम हो जाता है. इसके चलते पशुपालकों को फायदे की जगह नुकसान होने लगता है. वहीं बीमारी के इलाज में खर्चा अलग से होता है.
एनिमल एक्सपर्ट का कहना है कि कुछ ऐसे तरीके हैं, जिन्हें अपनाकर न सिर्फ पशुओं को बीमार होने से बचाया जा सकता है, बल्कि उनसे बेहतर उत्पादन भी लिया जा सकता है. इसी तरह के 20 तरीके आपको यहां बताए जा रहे हैं.
क्या-क्या करना है, जानें यहां
एक माह पहले कृत्रिम गर्भाधान कराए गए पशुओं का गर्भ परीक्षण कराएं. जो पशु गर्भित नहीं हैं, उन पशुओं की जांच कराएं और फिर उचार कराएं.
दुहान से पहले और बाद में अयन और थनों को 1:1000 अनुपात में पोटेशियम परमैंगनेट के घोल से अच्छी तरह साफ कर लें.
दुहान के बाद पशुओं के थन पर नारियल का तेल भी लगाया जा सकता है.
नवजात बच्चों के लिए खीस बहुत जरूरी होती है. उन्हें पिलाएं और ठंड के मौसम में ठंड से बचाएं.
नवजात बच्चों को आंतरिक परजीवी का खतरा रहता है. इसलिए कीड़ों को मारने वाली दवा पिलाएं.
पशुओं को हमेशा ही ताजा पानी पिलाना चाहिए. वहीं ठंड के समय में गुनगुना पानी पिलाएं.
बकरी व भेड़ों को अधिक दाना न खिलाकर अन्य चारा भी समय—समय पर खिलाते रहें.
दुधारू पशुओं को गुड़ खिलाना बेहद ही जरूरी होता है. दुधारू पशु को तेल व गुड़ देने से भी शरीर का तापमान सामान्य रखने में मदद मिलती है.
अगर आप चाहते हैं कि पशु बीमार न पड़े तो पशुशाला में सफाई रखें और उसे सूखा रखें.
पशुओं को सर्दी से बचने के लिए रात के समय पशुओं को छत के नीचे या घास-फूस के छप्पर के नीचे बांध कर रखें.
पशुओं को बाहरी परजीवी से बचाने के लिए पशुशाला में फर्श एवं दीवार तथा सभी स्थानों पर 1 फीसदी मेलाथियान के घोल का छिड़काव या स्प्रे कर सफाई करें.
बाहरी परजीवी से बचाव के लिए दवा से नहलायें या पशु चिकित्सक के परामर्श से इंजेक्शन लगवाएं.
गर्मी में आए पशुओं का कृत्रिम गर्भाधान कराना चाहिए.
खुरपका-मुंहपका रोग से बचाव के लिए वैक्सीनेश कराना बेहद ही जरूर होता है.
गर्भ परीक्षण कराएं और बांझ मादाओं की जांच के बाद ही इलाज शुरू कराएं.
नवजात शिशुओं को आंतरिक परजीवी से बचाने के लिए 6 माह तक हर महीने दवा पिलाएं.
दुधारू पशुओं को थनैला रोग से बचाने के लिए दूध को मुट्ठी बांधकर निकालें.
बरसीम, रिजका व जई की सिंचाई क्रमशः 12 से 14 दिन एवं 18 से 20 दिन के अंतराल पर करें.
बरसीम, रिजका एवं जई से सूखा चारा या अचार यानी साइलेज के रूप में इकट्ठा कर चारे की कमी के समय के लिए सुरक्षित रखें.
स्थानीय मौसम के हिसाब से पशुओं को ठंड से बचाने के उपाय जारी रखें.
Leave a comment