नई दिल्ली. मकचरी एक ऐसी फसल है जिसे देश के कई राज्यों में चारे के तौर पर उगाया जाता है. मकचरी में कार्बोहाइडेट, प्रोटीन, विटामिन, रेशा आदि जैसे कई पोषक तत्व पाए जाते हैं. जो पशुओं के लिए फायदेमंद होते हैं. इसलिए ये चारा फसल पशुपालकों के लिए वरदान मानी जाती है. आपको बता दें कि मकचरी की खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट भूमि, जिसका पीएच मान 6.5 से 7.0 तक हो, उपयुक्त रहती है. अगर इसे लगाते हैं तो फिर पशुओं के लिए हरे चारे की टेंशन खत्म हो जाएगी.
राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) के मुताबिक मकचरी के लिए खेत तैयार करने के लिए जुताई 2-3 बार हैरो से करनी चाहिए. खरीफ में इसको जून के दूसरे पखवाड़े में बोएं. बीज को ड्रिल की सहायता से कतारों में 25-30 सेमी की दूरी पर बोना चाहिए.
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अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 30-40 किलो ग्राम बीज प्रति हैक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए.
80-100 किलो ग्राम नाइट्रोजन, 40 किलो ग्राम फोस्फोरस और 20 किलो ग्राम सल्फर प्रति हैक्टेयर की दर से डालना चाहिए.
नाइट्रोजन की दो-तिहाई मात्रा और फोस्फोरस व सल्फर की पूरी मात्रा बुवाई के समय तथा बाकी एक-तिहाई नत्रजन बुवाई के 30 दिन बाद डालनी चाहिए.
बारिश के मौसम में बोई गई फसल को सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है.
जुलाई के अंतिम सप्ताह या अगस्त में बोई गई फसल में वर्षा के बाद भी सिंचाई की जरूरत पड़ती है. क्योंकि यह फसल अक्टूबर-नवम्बर तक चलती है.
हरे चारे के लिए फसल को बुवाई के 55-60 दिन बाद काटना चाहिए.
कुल 35-40 टन हरा चारा प्रति हैक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है.
उन्नत किस्मों में टीएल-1, पीएयू लुधियाना है. उत्तर और उत्तरी-दक्षिण भाग में औसत हरा चारा उपज 48 टन है.
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