Home पशुपालन Animal Husbandry: देश के 139 शहरों में है इस खतरनाक बीमारी का खतरा, यहां पढ़ें लक्षण और इलाज
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Animal Husbandry: देश के 139 शहरों में है इस खतरनाक बीमारी का खतरा, यहां पढ़ें लक्षण और इलाज

buffalo calving
प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली. थीलेरियोसिस रोग गाय-भैंस में बीलेरिया एनूलाटा एवं भेड़-बकरी में थौलेरिया ओविस नामक रक्त में पाए जाने वाले परजीवी से होता है. ये बीमारी कम उम्र के बछड़ो को अपनी चपेट में ले लेती है. इस रोग के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते है. बताते चलें कि इस रोग का प्रकोप गर्मी और बरसात के मौसम में अधिक होता है. इस दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों में बारिश हो रही है. इसके चलते इस रोग के फैलने का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ गया है. दरअसल, हाई ह्यूमिडिटी किलनियों में इजाफा कर देती हैं. एक्सपर्ट कहते हैं कि समय रहते इस रोग का उचित उपचार होना बेहद जरूरी है. अगर ऐसा न हो तो 90 प्रतिशत पशुओं की मौत हो जाती है. इस रोग का फैलाव गाय-भैंसों व बछड़ों में खून चूसने वाली किलनी हाइलोमा एनालोटिकम द्वारा होता है.

जुलाई के महीने में यह बीमारी देश के 70 जिलों को प्रभावित कर सकती है. जिसमें झारखंड के 22 शहर, उत्तर प्रदेश के 16 शहर, केरल के 13 शहर और वेस्ट बंगाल के 11 शहर इसकी चपेट में आ सकते हैं. वहीं अगस्त के महीने में यह बीमारी देश की कई राज्यों में फैल सकती है. सबसे ज्यादा खतरा उत्तर प्रदेश और झारखंड में है. झारखंड के 23 शहर और उत्तर प्रदेश के 20 शहर इसकी चपेट में आ सकते हैं. इसके अलावा केरल में भी 11 शहरों में ये बीमारी पशुओं में फैल सकती है.

क्या हैं इस बीमारी के लक्षण
-इस रोग से प्रभावित पशु में लगातार सामान्य की तुलना में बहुत ज्यादा बुखार रहता है.
-स्केपूला के बगल वाले लिम्फ नोड (लसिका ग्रंथि) में सूजन आ जाती है जो स्पष्ट रूप से दिखती है.
-हृदय गति एवं श्वसन गति बढ़ जाती है. नाक से पानी, आंखो से स्त्राव एवं खासी आने लगती है.
-रोगग्रस्त पशु के शरीर में खून की कमी हो जाती है.
-भूख नहीं लगने के कारण पशु खाना-पीना कम कर देता हैं, जिसकी वजह से पशु अत्यधिक कमजोर हो जाता है.
-दुधारू पशु के दुग्ध उत्पादन में गिरावट होने लगती है.
-कुछ समय पश्चात्त बुखार कम होने के साथ-साथ पशु में पीलिया के लक्षण दिखाई देने लगते हैं, जिसकी वजह से पशु का मूत्र भी पीला हो जाता है.कभी-_कभी संक्रमित पशु को खूनी दस्त भी होने लगतें हैं.
-उचित उपचार न मिलने पर संक्रमित पशु की मृत्यु भी हो जाती है एवं मृत्यु दर गर्भवती गायों में सबसे अधिक होती है.

कैसे करें बीमारी की पहचान
-इस रोग की पहचान प्रमुख लक्षणों (स्केपूला के बगल वाले लिम्फ नोड में सूजन) के आधार पर की जाती है.
-इसके अलावा आसपास के क्षेत्र में किलनियों का पाया जाना भी इस रोग का कारण है.
-जांच के लिए खून के पतले क्लीयर एवं लिम्फ नोड्स व यकृत की बायोप्सी की जानी चाहिए जिससे परजीवी की उपस्थिति का पत्ता लगाया जा सके.
-इसके अलावा पीसीआर एवं सीएफटी द्वारा भी इस रोग की जांच की जा सकती है.

ये उपचार का तरीका
-थीलेरियोसिस रोग के इलाज के लिए बुपास्वाकियोनोन दवा का प्रयोग
पशुचिकित्सक की देखरेख में करना चाहिए.
-एनीमिया की स्थिति में आयरन के टीके लगाना उचित रहेगा.
-पशु के आवास स्थल को चूने एवं कीटनाशक से धोना चाहिए तथा आवास स्थल की चूने से पुताई करनी चाहिए.
-इस रोग से बचाव के लिए रक्षावैक टी टीका (3 मिली) 2 वर्ष के ऊपर के गाय व गाय के बछड़ों के गर्दन में त्वचा के नीचे लगवाना चाहिए और इस रोग की पूर्ण रोकथाम के लिए प्रतिवर्ष इस टीके को लगवाना चाहिए. यह टीका ब्याहने वाली गायों को नहीं लगाते हैं.
-किलनियों के नियत्रण के लिए 10 प्रतिशत साइपरमैयरीन स्प्रे से पशु के शरीर पर छिड़काव करना चाहिए तथा आइवरमैक्टीन इंजेक्शन 0.2 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम की दर से पशु को दिया जाना चाहिए.

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