नई दिल्ली. बकरी पालन एक बेहतरीन कारोबार का रूप लेता जा रह है. अब बकरी पालन सिर्फ घर के आंगन में नहीं हो रहा है. बल्कि बकरी पालन के लिए लाखों रुपये के शेड बनाए जा रहे हैं और सैकड़ों की तादाद में बकरी पालकर बकरी पालक लाखों करोड़ों रुपये कमा रहे हैं. अगर बड़े पैमाने पर बकरी पालन न भी हो तो कम से कम बकरी पालन गरीब ग्रामीणों, खेतीहर मजदूरों, लघु एवं सीमांत किसानों तथा महिलाओं की आय का प्रमुख साधन है, लेकिन फिर भी एक्सपर्ट मानते हैं कि कुछ कारणों से भारत में बकरी पालन का समुचित विकास नहीं हो पा रहा है.
एक्सपर्ट कहते हैं कि बकरी पालन करना जितना फायदेमंद है, उस हिसाब से बकरी पालन भारत में नहीं किया जा रहा है. गोट एक्सपर्ट मनोज कुमार सिंह कहते हैं इसके कई कारण हैं, जिसकी वजह से बकरी पालन को उतनी पहचान नहीं मिल रह है जितनी मिलनी चाहिए. आइए एक्स्पर्ट की नजर से जानते हैं क्या-क्या वजह है कि बकरी पालन का विकास उतनी तेजी से नहीं हो रहा है जितनी तेजी से होना चाहिए.
बकरियों के प्रति पूर्वाग्रह
बकरियों को गरीबी की पहचान माना जाता रहा है साथ ही बकरियों को पर्यावरण विनाशक एवं भूमि बंजर करने वाला पशु माना जाता रहा है. इन मिथ्या कल्पनाओं के खिलाफ जागरुकता एवं इनका निवारण करना अत्यंत आवश्यक है.
आवश्यक जानकारी के अभाव में परम्परागत पालन पद्धति
बकरियों को सामान्यतः बंजर हुए चारागाहों में चराकर पाला जाता है. उनकी उत्पादकता, उम्र, एवं नस्ल आदि का ध्यान नहीं रखा जाता है. कुपोषण से ग्रसित बकरियों की उत्पादकता घट जाती है. समुचित आवास एवं रक्षक टीकों के अभाव में मृत्युदर 50 प्रतिशत तक पहुंच जाती है.
बीजू बकरों का भारी अभावः अच्छी बढ़वार के लिये उच्च उत्पादन
क्षमता वाले नर मेमनों को खस्सी कर दिया जाता है. जिसकी वजह से निम्न उत्पादन क्षमता वाले बीजू बकरे नकारात्मक आनुवंशिक योगदान कर रहे हैं. साथ ही एक बकरे को रेवड़ या गांव में 3-5 वर्ष तक इस्तेमाल किया जाता है. एवं उसी बकरे विशेष के बच्चों को पुनः उसी रेबड़ में बीजू बकरे के रूप में उपयोग में लाया जाता है.
बकरी एवं बकरी उत्पाद के क्रय-विक्रय का अभाव
चूंकि बकरी गरीबों द्वारा पाली जाती है. इसलिए स्ट्रेस सेल आर्थिक तंगी होने से बकरियां बहुत कम मूल्य पर बिचौलियों के हाथ बिक जाती हैं. बकरी का दूध प्रचुर औषधीय गुणों से युक्त है फिर भी बकरी के दूध का बाजार मूल्य गाय-भैंस के दूध की तुलना में लगभग आधा रहता है. जबकि वित्त प्रदान करने वाली संस्थाओं की जटिल प्रक्रिया वित्त प्रदान करने वाली संस्थाओं की प्रक्रिया इतनी जटिल होती है कि अशिक्षित एवं कम पढ़े-लिखे बकरी पालकों के लिए बैकों तथा अन्य संस्थाओं से वित्त सहायता प्राप्त करना कठिन हो जाता है.
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