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Milk Production: गाय-भैंस, भेड़-बकरी को बीमारी से बचाने और ज्यादा दूध लेने के लिए जरूर करें ये 23 काम

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नई दिल्ली. गाय-भैंस को तो अधिकतर लोग दूध उत्पादन के लिए ही पालते हैं. वहीं अब भेड़-बकरी के दूध की भी अहमियत बढ़ती जा रही है. इसमें खासतौर पर बकरी के दूध की तो कुछ ज्यादा ही अहमियत है. इसके चलते पशुपालक हमेशा ही इस कोशिश में लगे रहते हैं कि कैसे इन पशुओं के दूध उत्पादन को बढ़ाया जाए. क्योंकि जब दूध उत्पादन ज्यादा से ज्यादा मिलेगा तो इससे पशुपालकों को फायदा भी ज्यादा​ होगा. एक्सपर्ट का कहना है कि पशुओं को बीमारी से भी बचाना बेहद ही अहम है.

अगर आप भी गाय-भैंस, भेड़-बकरी को बीमार से बचाना चाहते हैं और ये चाहते हैं कि आपका पशु ज्यादा दूध प्रोडक्शन करे तो ये खबर आपके लिए ही है. इसमें कुल 23 काम ऐसे बताए गए हैं, जिसके जरिए आप दूध प्रोडक्शन बढ़ा सकते हैं. आइए इसके बारे में जानते हैं.

यहां पढ़ें, क्या-क्या करना है
एक माह पहले कृत्रिम गर्भाधान कराए गए पशुओं का गर्भ परीक्षण कराएं. जो पशु गर्भित नहीं हैं, उन पशुओं की जांच कराएं और फिर उपचार भी कराएं.

दूध दुहने के पहले पहले और बाद में अयन एवं थनों को 1:1000 पोटेशियम परमैंगनेट के घोल से अच्छी तरह साफ कर लें.

पशुओं से हासिल होने वाले बछड़े और बछियों का खास ख्याल रखें.

नवजात बच्चों को खीस पिलाएं एवं ठंड से बचाएं.

बच्चों को हमेशा ही कीड़ों को मारने वाली दवाएं दें. इससे वो बीमारी से बचेंगे.

पशुओं को ताजा या गुनगुना पानी पिलाएं.

बकरी व भेड़ों को अधिक दाना ना खिलाकर अन्य चारा दें.

दुधारू पशुओं को गुड़ खिलाएं. ये हमेशा ही फायदा पहुंचाता है.

दूध दुहने के बाद थन पर नारियल का तेल लगाना भी बेहतर होता है.

पशुशाला को समुचित स्वच्छ व सूखा रखें. इससे पशु बीमार नहीं होंगे.

कमजोर व रोगी पशुओं को बोरी की झूल बना कर ढकें. सर्दी से बचने के लिए रात के समय पशुओं को छत के नीचे या घास-फूस के छप्पर के नीचे बांध कर रखें.

दुधारू पशु को तेल व गुड़ देने से भी शरीर का तापमान सामान्य रखने में सहायता मिलती है.

पशुओं को बाहरी कीड़ों से बचाने के लिए पशुशाला में फर्श एवं दीवार तथा सभी स्थानों पर 1 फीसद मेलाथियान के घोल का छिड़काव या स्प्रे कर सफाई करें.

बाहरी कीड़ों से बचाव हेतु दवा से नहलायें या पशु चिकित्सक के परामर्श से इंजेक्शन लगवाएं.

गर्मी में आए पशुओं का कृत्रिम गर्भाधान कराएं.

खुरपका-मुंहपका रोग से बचाव हेतु समुचित टीकाकरण कराएं.

गर्भ परीक्षण कराएं और बांझ मादाओं का सम्यक जांच उपरांत उपचार कराएं.

नवजात शिशुओं को आंतरिक परजीवी मारने वाली दवाएं 6 माह तक प्रत्येक माह दें.

दुधारू पशुओं को थनैला रोग से बचाने के लिए पूरा दूध को मुट्ठी बांधकर निकालें.

बरसीम, रिजका व जई की सिंचाई क्रमशः 12 से 14 दिन एवं 18 से 20 दिन के अंतराल पर करें.

बरसीम, रिजका और जई से सूखा चारा या अचार यानी साइलेज के रूप में इकट्ठा कर चारे की कमी के समय के लिए सुरक्षित रखें.

स्थानीय मौसम के हिसाब से पशुओं को ठंड से बचाने के उपाय जारी रखें.

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