नई दिल्ली. नेशनल कैमेलल रिसर्च सेंटर की मानें तो ऊंट विपरीत परिस्थितियों में पाए जाने वाली प्रजाति है. जिसमें कई विशेषताएं हैं. सालों से इंसान इसे अपने घर के कामों के लिए उपयोग में लेता आया है लेकिन अन्य पशु वंश की तरह इसका महत्त्व इंसानों के लिए ज्यादा फायदेमंद गुणकारी सिद्ध हो चुका है. जरूरत इस बात की है कि ऊंटनी के दूध से मिले औषधीय अमृत को इंसानों स्वास्थ्य के लिए अधिक-से-अधिक इस्तेमाल किया जाए. दूध उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए ऊंटनी के प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि उसमें अपेक्षित ग्रोथ हासिल की जा सके.
नेशनल कैमेल रिसर्च सेंटर के मुताबिक ज्यादा दूध देने वाली ऊंटनियों में थनैला रोग की संभावना बनी रहती है. अक्सर थनों में सूजन, मवाद पड़ना, दूध का खराब आना, थन से पानी/खून का रिसाव जैसे कई लक्ष्ण दिखाई देते हैं. जिसकी समय-समय पर जांच करवाते रहना चाहिए व उसका इलाज जल्द से जल्द करवाना चाहिए ताकि पशु के थनों को बचाया जा सके. ताकि ऊंट किसी तरह की भी परेशानी से बचाया जा सके. इसकी देखभाल करते रहना चाहिए.
दूध दुहते समय सफाई का रखें ख्याल
पशुओं के दुहने के स्थान को साफ और सूखा रखना चाहिए, साफ-सफाई के उपाय के रूप में सप्ताह में एक बार मिट्टी पर चूना फैलाना चाहिए. गर्भवती और स्तनपान कराने वाले जानवरों को अलग-अलग पशु प्रवाल में रखाना चाहिए. दूध सेवन के बाद, बछड़ों को बेहतर प्रबंधन के लिए समूहों में अलग-अलग बाड़ों में रखाना बेहतर है. जो गर्भवती नहीं है और बढ़ते जानवरों को भी अलग-अलग रखा जाना चाहिए ताकि उनकी ग्रोथ और गर्भवती जानवरों के लिए पर्याप्त जगह उपलब्ध हो सके.
ऊंट को पिलाएं इतना पानी
उत्पादन के लिए लगभग 6-8 लीटर पानी प्रति लीटर दूध की आवश्यकता रहती है. पीने के पानी को साफ और स्वच्छ स्थान में भंडारण करें. ताकि बीमारी फैलाने से बचाव किया जा सके. खारे पानी में सोडियम, कैल्सियम, मैग्नीशियम, और फ्लोराइड या नाइट्रेट जैसे तत्त्व हो सकते हैं, जो आवश्यकता से अधिक होने पर पशु के लिए हानिकारक हो सकते हैं. दूषित पानी के कारण पशुओं के दूध उत्पादन क्षमता पर विपरीत प्रभाव हो सकता है. महीने में दो बार जल भंडारण स्थान को खाली कर उसमें चूना से पुताई कर दें.
इन बातों का भी ख्याल रखें
पीने के लिए स्वच्छ पानी आमतौर पर पशुओं के जल स्रोत वाली जगहों पर कुछ ही दिनों के बाद काई जमने लगती है. उन स्थलों की सफाई तथा देखभाल की जानी चाहिए और स्वच्छ पानी की व्यवस्था बनाए रखने के लिए कम-से-कम माह में दो बार ताजा चूना से पानी वाली खेली की पुताई करनी चाहिए. जानवरों के पैरों को गंदा होने से बचाने के लिए उचित जल निकासी की सुविधा का भी विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए.
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