नई दिल्ली. बकरी पालन बड़े कारोबार की शक्ल लेता जा रहा है. ग्रामीण इलाकों से लेकर शहर तक में बकरी पालन किया जा रहा है. वहीं केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा का रिकार्ड ये बता रहा है कि बकरी पालन सिर्फ किसान ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि ग्रेजुएट और पीएचडी होल्डर भी इसमें हाथ आजमा रहे हैं. सीआईआरजी के अफसरों का कहना है कि फिल्म स्टार और काकाजी के नाम से मशहूर राजेश खन्ना भी संस्थान से बकरी पालन की ट्रेनिंग ले चुके हैं. जबकि देश की सियासत से जुड़े कई बड़े परिवार के सदस्य भी ट्रेनिंग हासिल कर चुके हैं. वहीं बड़ी संख्या में सरकारी पदों पर तैनात रहे रिटायर्ड अफसर भी भेड़-बकरी पालन की ट्रेनिंग लेने के लिए अक्सर सीआईआरजी का रुख करते हैं.
गौरतलब है कि केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा में भेड़-बकरी पालन की फील्ड ट्रेनिंग देने के मकसद से बरबरी, जमनापरी, जखराना नस्ल के बकरे-बकरी और मुजफ्फरनगरी नस्ल की भेड़ को पाला गया है. संस्थान में भेड़-बकरी के ब्रीड पर भी यहां काम होता है.आपको बताते चलें कि सीआईआरजी में चार डिवीजन है. इन सभी डिवीजन का काम भेड़-बकरी पालन के लिए लोगों को ट्रेनिंग देना है. जबकि एनीमल जेनेटिक ब्रीडिंग, न्यूट्रीशन और प्रोडक्ट टेक्नोलॉजी, एनीमल हैल्थ और फिजियोलॉजी एंड रीप्रोडक्शन डिवीजन ये काम करते हैं.
जानकारी के मुताबिक इसमें से एनीमल जेनेटिक ब्रीडिंग डिवीजन भेड़-बकरी की नस्ल सुधार को लेकर काम करती है. वहीं न्यूट्रीशन और प्रोडक्ट टेक्नोलॉजी डिवीजन भेड़-बकरी के चारे और उनसे मिलने वाले दूध, मीट, ऊन और फाइबर आदि को लेकर काम करती है. इसके अलावा एनीमल हेल्थ डिवीजन बकरियों की बीमारी के समाधान और रोकथाम को लेकर काम करती है. वहीं फिजियोलॉजी एंड रीप्रोडक्शडन डिवीजन भेड़-बकरियों की संख्या बढ़ाने पर काम करती है. आर्टिफिशल इंसेमीनेशन तकनीक की मदद से भेड़-बकरियों का कुनबा बढ़ाने की कोशिश होती है.
सीआईआरजी की ट्रेनिंग सेल के कोऑर्डिनेटर और वरिष्ठ अधिकारी डॉ. एके दीक्षित का कहना है कि आज बकरी पालन किसी वर्ग और जाति तक नहीं सिमटा है बल्कि तमाम लोग इसे कर रहे हैं. ग्रेजुएट और पीएचडी किए हुए लोग भी बकरी पालन करने में कतई पीछे नहीं हैं. उन्होंने आगे कहा कि संस्थान से दर्जनों जानी-मानी शख्सियतों ने ट्रेनिंग हासिल की है. सरकारी सेवा का कोई न कोई एक रिटायर्ड सीनियर अफसर तो लगभग ट्रेनिंग के हर बैच में शामिल ही रहता है. जो बताता है कि बकरी कारोबार लोगों की निगाह में कितना अहम होता जा रहा है.
उन्होंने कहा कि उन्हें याद है कि एक बार रात के वक्त राजेश खन्ना अपने पीए के साथ सीआईआरजी आए और रात होने के नाते उन्हें कोई पहचान नहीं सका. उन्हें गेस्ट हाउस में ठहराया गया और जब सुबह मैस का एक कर्मचारी चाय लेकर गया तो तब उनकी पहचान हो सकी. उन्होंने सीआईआरजी में रुककर बकरी पालन की पूरी ट्रेनिंग हासिल की. बाद में हमे यह पता नहीं चल पाया कि उन्होंने बकरी पालन शुरू किया था या नहीं. लेकिन उनके पास एक बड़ा फार्म हाउस था. इसकी जानकारी उन्होंने खुद दी थी.
उन्होंने कहा कि सेना से कर्नल और बिग्रेडियर जैसी बड़ी रैंक से रिटायर होने वाले अफसर भी बकरी पालन को लेकर यहां सीखने के मकसद से आते हैं. इसके अलावा बीएसएफ, सीआरपीएफ और पुलिस फोर्स के बड़े रिटायर्ड अफसर भी बकरी पालन को लेकर उत्सुकत दिखते हैं और ट्रेनिंग लेते हैं. यही नहीं है कि वो सिर्फ ट्रेनिंग लेते हैं बल्कि जानकारी हासिल होने के बाद बकरी पालन भी करते भी हैं. जबकि कई अफसर तो दूध और मीट के लिए बकरे और बकरियों का पालन करके कारोबार तक करते हैं.
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