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इस निंजा टेक्निक को अपनाकर बचा सकते हैं नीलगायों से खेती को, जानिए इस देसी तकनीक के बारे में

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नई दिल्ली. नीलगायों के उत्पात से किसान परेशान हैं। कड़ी मेहनत से फसल करते हैं और ये नीलगाय चंद घंटों में ही किसानों द्वारा कड़ी मेहनत से उगाई गई फसल को बर्बाद कर देते हैं. इसे लेकर किसान लगातार स्थानीय प्रशासन से लेकर अपने-अपने प्रदेशों की सरकारों से भी गुहार लगाते हैं लेकिन उनकी सुनवाई नहीं होती. लगातार की गई मांग के बाद भी जब किसी ने कोई सुनवाई नहीं की तो उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर के एक किसान ने ऐसी निंजा टेक्निक निकाली है, जिसे देखकर सभी लोग हैरान है. सबसे बड़ी खास बात ये है कि इस तकनीक को इजाद करने में कोई पैसा भी खर्च नहीं हो हुआ. अब बिना कोई पैसे खर्च किए अब लोग अपने पौधों को इन नील गायों से सुरक्षित रख सकते हैं.

आवारा जानवर और नील गायों से किसान परेशान हैं. लाखों रुपया खर्च करके किसान फसल उगाते हैं लेकिन नील गाय फसल को रौंदकर बर्बाद कर देती हैं, जिससे किसानों को बड़ा आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. हालात ये है कि किसान दिन-रात फसलों की रखवाली के लिए खेतों पर ही पड़े रहते हैं. आवारा जानवरों का मुद्दा चुनाव में भी उठ चुका है. किसान आंदोलन भी कर चुके हैं. शासन से लेकर प्रशासन तक से गुर लगा चुके हैं लेकिन कहीं पर कोई सुनवाई नहीं होती. ऐसे में परेशान होकर शाहजहांपुर के एक किसान ने निंजा टेक्निक इजाद कर अपने बाग को बचाया है. इसमें किसानों को अब न ट्री गार्ड बनाने की जरूरत है और न ही खेत किनारे फेंसिंग करने की. अगर आप भी इस तकनीक को अपनाना चाहें तो इसमें कोई पैसे का खर्चा नहीं.

न ट्री गार्ड न ही फेंसिंग की जरूरत
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर विकासखंड के खुदागंज के किसान के लाल बहादुर ने बताया कि पिछले कई सालों से बागवानी कर रहे हैं. नीलगाय उनके बाग में लगे पौधों को खा जाते हैं. इससे उनकी मेहनत तो जाती ही है पैसा भी खूब बर्बाद होता है. नील गाय तो ट्री गार्ड को भी तोड़कर पौधों को खा जाते हैं. अगर खा नहीं पाते तो पेड़ को तोड़ देते हैं. लगातार हो रही परेशानी के बाद इस देसी तकनीक को ईजाद किया गया. अब इस तकनीक के से पौधे सुरक्षित हैं.

जानिए क्या है निंजा टेक्निक
बागवान लाल बहादुर इस निंजा टेक्निक के बारे में बताते हैं कि पौधे को लगाने के बाद उसकी जड़ से चारों ओर करीब एक-एक मीटर जगह छोड़ने के बाद दो फीट चौड़ा और करीब दो फीट गहरा ही गड्ढा बना देते हैं. इस गड्ढे से निकली मिट्टी को पेड़ के चारों ओर मेड़ का आकार देकर छोड़ देते हैं. जब भी नील गाय पेड़ को खाने के लिए आती है तो गडढे में गिर जाती है. इतना ही नहीं नील गाय जब पेड़ को खाने के लिए आगे बढ़ती है तो उसके आगे के दोनों पैर दो फीट गहरे गहरे गड्ढे में चले जाते हैं. इसके बाद पेड़ की ऊंचाई नीलगाय के शरीर से ज्यादा हो जाती है. ऐसे में नीलगाय गर्दन उठाकर पेड़ को नहीं खा सकती, क्योंकि नीलगाय की गर्दन नीचे तो चली जाती है लेकिन धड़ से ऊपर की ओर नहीं मुड़ती. इतना ही नहीं उसे ये भी लगता है कि किसी शिकारी ने पकड़ने के लिए जाल बिछाया गया है तो वो तेजी से भागती है. इस तकनीक के बाद से नील गाय बाग में नहीं आ रहीं. इससे पौध सुरक्षित है और इसमें पैसा भी खर्चा नहीं होता.

इस घरेलू नुस्खे को भी अपनाएं किसान
निंजा टेक्निक के अलावा किसान कुछ घरेलू उपाय करके भी अपनी खेती को बचा सकते हैं. फसलों में चार किलो मट्ठे में छिला हुआ प्याज, बालू के साथ मिलाकर फसल पर छिड़क दें. इसकी गंद से नील गाय आपके खेत के आसपास तक नहीं आएगी. इसके अलावा लहसुन से बने पेस्ट को भी खेतों पर छिड़क सकते हैं. लहसुन की गंध से भी नीलगाय खेतों में नहीं घुसेगी. इन दोनों देसी उपाय से किसान अपने बाग और खेती को बचा सकते हैं.

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