नई दिल्ली. वेटरनरी विश्वविद्यालय के प्रसार शिक्षा निदेशालय और बीकानेर जिला उद्योग संघ के की ओर से ‘बीकानेर में पशुधन आधारित उद्यम, परिदृश्य और सम्भावनाएं‘ विषय पर चर्चा हुई तो कई अहम चीजें निकलर सामने आईं. इस दौरान भेड़ की ऊन के कारोबार में देश क्यों पिछड़ रहा है, इसकी वजह भी एक्सपर्ट ने बताई. कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित ने कहा कि उद्योग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से एक दूसरे से जुडे होते हैं. जिससे हम आने वाली समस्याओं को एकजुट प्रयासों से दूर कर सकते हैं. पीपीपी मोड पर ऊन, दूध, पशुआहार व अन्य उत्पादों की जांच के लिए के लिए हाईटैक लैब की स्थापना की जरूरत है ताकि उद्यमियों को इनकी जांच में लगने वाले खर्च व समय बच सके.
कुलपति ने वेटरनरी महाविद्यालय में भ्रूण ट्रांसप्लांट लेबोरेटरी जल्दी शुरू होने की बात कही. छात्रों में उद्यमिता विकास के लिए इन्क्यूबेशन सेंटर विकसित करने और भविष्य को ध्यान में रखते हुए वर्चुअल लेबोरेटरी और रोबोटिक ऑपरेशन थियेटर विकसित करने का भी सुझाव दिया. बैठक में जिला उद्योग संघ के अध्यक्ष डीपी पचीसिया ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि बीकानेर जिला राज्य का बड़ा व्यापारिक केन्द्र है. यहां से दूध, ऊन, मोठ, मूंगफली, ग्वार, दालों आदि का बड़ा व्यापार होता है, लेकिन शहर में कोई मेगा फूड पार्क विकसित नहीं है ना ही मान्यता प्राप्त फुड़ टेस्टींग प्रयोगशाला है जिसके माध्यम से खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता निर्धारित हो सके. बीकानेर शहर में मेगा फूड पार्क एवं फूड टेस्टींग प्रयोगशाला स्थापित हो जाने से व्यापार जगत को गति मिलेगी.
दूध टेस्टिंग लैब की है जरूर
महाप्रबंधक लोट्स डेयरी बीकानेर अशोक मोदी ने कहा कि बीकानेर पशुपालन आधारित जिला है. जहां कृषि और दूध व्यवसाय ट्रेडिशनल है. दूध की मांग लगातार बढ़ रही है लेकिन मांग आपूर्ति के साथ-साथ क्वालिटी तय करना बहुत जरूरी है. अशोक मोदी ने शहर में उच्च मानक की दूध टेस्टिंग लैब स्थापित करने की जरूरत महसूस की ताकि दूध और दूध उत्पादों का निर्यात संभव हो सके. उन्होने पशु चारा गुणवत्ता निर्धारण, चारागाह विकास एवं दुग्ध व्यवसाय के आधुनिकरण, कृत्रिम गर्भाधान के लिए सेक्स सोर्टड सीमन के उपयोग को बढावा देने एवं इस व्यवसाय के प्रोत्साहन हेतु सरकारी सहयोग की बात साझा की.
ये ऊन कारोबार में पिछ़ने की वजह
ऊन इंडस्ट्री से कमल कल्ला, संजय राठी ने अपने कहा कि बीकानेर एशिया की सबसे बड़ी ऊन मंडी गिनी जाती है लेकिन भेड़ों की संख्या कम होने, चारागाह घटने और उत्तम ऊन टेस्टिंग एवं संसाधनों की कमी से आज ऊन का आयात भी करना पड़ रहा है. राजस्थान से बेहतरी गलीचा ऊन का उत्पादन होता है लेकिन यहां सर्टिफिकेशन के अभाव में निर्यात में दिक्कतें आती हैं और प्रोडक्ट का पूर्ण मूल्य नहीं मिल पाता है. जिला उद्योग संघ के वीरेन्द्र किराडू ने पशुपालकों को ऊन उत्पादन प्रशिक्षण के लिए ब्रीज कोर्स शुरू करने का सुझाव दिया. निदेशक प्रसार शिक्षा प्रो. राजेश कुमार धूड़िया ने बताया कि बैठक में डेयरी, भेड़, बकरी एवं मुर्गी पालन के बहुउपयोगी सेक्टर में क्षमता संवर्द्धन कर उद्यमिता विकास के कार्याे पर भी इस बैठक में विचार-विमर्श किया गया ताकि युवा एवं पशुपालक इस क्षेत्र में स्वरोजगार की ओर अग्रेषित हो सके.
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