नई दिल्ली. मुर्गी पालन का क्रेज लोगों मे बढ़ता ही जा रहा है. जब भी पोल्ट्री कारोबार की बात की जाती है तो लोगों के जहन में सिर्फ मुर्गी पालन ही आता है. अगर इसे ठीक से कर लिया जाए तो इससे अच्छा मुनाफा कोई और विजनेस नहीं दे सकता, लेकिन पोल्ट्री से जुड़ा एक और कारोबार है, जिसे कम लागत पर अच्छी तरह से किया जा सकता है. इसमें भी एक बार में दो तरह की फार्मिंग की जा सकती है. एक तो डक फार्मिंग और दूसरी मछली पालन. जिस तालाब में आप डक फार्मिंग कर रहे हैं, उसी पानी में मछली पालकर दो तरह से मुनाफा कमा सकते हैं.
जब कभी भी पोल्ट्री कारोबार का जिक्र होता है तो सबसे पहले जिक्र आता है मुर्गी पालन का. यही वजह है कि ज्यादातर लोग इसको करना पसंद करते हैं. खासकर के छोटे और सीमांत किसानों की दिलचस्पी इसमें ज्यादा होती है. हालांकि पोल्ट्री व्यवसाय में ही डक फार्मिंग यानी बत्तख पालन भी आता है जो मुर्गी पालन से कम कमाई वाला व्यवसाय नहीं है. बल्कि इससे ज्यादा कमाई की जा सकती है. उसमें भी डक फार्मिंग के साथ मछली को भी पाल लिया जाए तो सोने पर सुहागा. आज लाइव स्टॉक एनिमल न्यूज आपको एक साथ डक और फिश फार्मिंग के तरीके बता रहा है.
सरकार दे रही है पोल्ट्री और फिश फार्मिंग पर छूट
पोल्ट्री फार्मिंग को ऐसा व्यवसाय माना जाता है, जिसे कम पूंजी, कम समय और कम मेहनत में शुरू किया जा सकता है. अगर मुर्गी और बत्तख पालन व्यवसाय सही ढंग से कर लिया जाए तो इससे काफी अच्छी इनकम हासिल की जा सकती है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लगभग 50 लाख लोग मुर्गी पालन के रोजगार से जुड़े हैं. पोल्ट्री फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए सरकार सब्सिडी प्रदान करती है. कोई मुर्गी पालन व्यवसाय शुरू करना चाहता है उसके बिजनेस की लागत एक लाख रुपये है तो सरकार सामान्य वर्ग के तहत 25 फीसदी यानी 25 हजार और एसटी एससी वर्ग के तहत 35% यानी 35 हजार रुपये सब्सिडी देगी. यह सब्सिडी नाबार्ड की ओर से दी जाती है.
ऐसे मछली-बत्तख एक साथ पाली जा सकती हैं
मछली पालकों की मानें तो किसान मछली के साथ-साथ बत्तख का भी पालन कर सकते हें. इसमें किसानों को अतिरिक्त कुछ भी लगाने की जरूरत नहीं, जिस तालाब में बत्तख पानी जा रही हैं, उसी में मछली को पाला जा सकता है. मछली और बत्तख पानी में रहती हैं. हालांकि बत्तख पानी और जमीन दोनों पर रह सकती है लेकिन अपना भोजने करने के लिए उसे तालाब में उतरना ही होता है. तालाब के कीड़े- मकोड़े खा कर वह अपना पेट भर लेती है. अगर मछली पालक किसान बत्तख पालन करता है, तो तलाब साफ तो रहेगा ही साथ में बत्तख के अंडे और मांस बेचकर वह कमाई भी कर सकता है. वहीं, बत्तखों के मलमूत्र को वह मछलियों के आहार के रूप में भी इस्तेमाल कर सकता है.
ऐसे हो सकता है दोनों को पालने से फायदा
विशेषज्ञों के अनुसार अगर बत्तख के तालाब में ही मछली पाली जाती हैं तो इसमें कम से कम 60 फीसदी की कमी आ सकती है. बत्तख तालाब की गंदगी खाकर उसकी साफ-सफाई कर सकती है और मछली बत्तख का मल—मूत्र खाकर अपना पेट भर सकती है. ऐसे में किसान को कम लागत में दो गुना लाभ हो सकता है. इतना ही नहीं जब त्तख तालाब में तैरती है तो तालाब में ऑक्सीजन का स्तर भी बढ़ जाता है. इससे मछलियों की ग्रोथ तेजी से होती है और वे लंब समय तक स्वस्थ्य भी रहती हैं.
इन नस्ल की बत्तखों को रखें
अगर किसान मछली के साथ बत्तख भी पालना चाहते हैं तो उन्हें एक तो अच्छी नस्ल की बत्तख रखनी पड़ेगी. इन नस्ल में खाकी कैंपबेल, सिलहेट मेटे, नागेश्वरी और इंडियन रनर बत्तख बेहतर साबित हो सकती हैं. इसके अलावा तालाब को भी स्टेंडर्ड लेबल का होना चाहिए. तालाब की गहराई कम से 1.5 से दो मीटर तक होनी चाहिए. तालब में 250 से 350 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से चूने का प्रयोग करें. एक हेक्टेयर में 250 से 300 बत्तखों को पालाजा सकता है. इतना ही नहीं तालाब ऊपर या किनारे से बत्तखों के लिए बाड़ा बना सकते हैं.
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