नई दिल्ली. मछली पालन का परंपरागत तरीका तालाब में मछली पालन करना है. हालांकि अब केज सिस्टम से भी मछली पालन करके कमाई की जाती है. बिहार सरकार के पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग (Department of Animal and Fisheries Resources) की ओर से इस संबंध में कुछ अहम जानकारियां शेयर की गई हैं. जिसको लाइव स्टक एनिमल न्यूज (Livestock Animal News) आपके लिए लाया है. अगर आप केज कल्चर करना चाहते हैं तो ये जानकारियां आपके लिए काफी अहम हो सकती हैं. फिर देर किस बात की है, आइए इस बारे में जानते हैं.
पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग के एक्सपर्ट का ये भी कहना है कि ये एक फायदेमंद तरीका है और इसमें मछलियों की देखरेख भी कम करनी होती है.
केज मत्स्य पालन क्या है
आपको बता दें कि ये एक मछली पालन की विधि है, जिसमें मछलियों को प्राकृतिक जल निकायों (जैसे नदियां, झीलें या समुद्र) में स्थापित जाल या केज में पाला जाता है.
इस तरीके में मछलियां एक नियंत्रित, तैरते हुए वातावरण में रखी जाती हैं. जिससे भोजन, प्रजनन और कटाई को आसानी से प्रबंधित किया जा सकता है.
केज मत्स्य पालन के फायदे क्या हैं
मछलियां एक सीमित क्षेत्र में रखी जाती हैं, जिससे भूमि का कम उपयोग होता है और स्थान की बचत होती है.
इस तरीके में पानी की गुणवत्ता, आहार और मछलियों के स्वास्थ्य पर आसानी से निगरानी रखी जा सकती है.
पिंजरे में मछलियों घनी संख्या में रखी जा सकती हैं, जिससे उत्पादन अधिक हो सकता है.
केज के लिए स्थान का चुनाव
तैरते हुए केज को ऐसी जगह स्थापित करना चाहिए जहां पानी की गहराई कम से कम 6 मीटर या उससे ज्यादा है.
जहां पानी का बहाव धीमा हो और औद्योगिक प्रदूषण ना हो.
स्थान सुरक्षित एवं पहुंच के दायरे में हो.
जहाँ पानी में बड़े जलीय पौधे नहीं हो.
जहां पर जानवरों एवं स्थानीय लोगों का आना जाना न हो.
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