नई दिल्ली. कार्प मछली का पालन भारत में एक्वाकल्चर का मुख्य आधार रहा है. कार्प मछली के पालन की बात की जाए तो एक्वाकल्चर में इसका योगदान 85 फीसदी से भी अधिक का है. रिपोर्ट के मुताबिक जलकृषि उत्पादन में भारतीय क्षेत्र में उपलब्ध 266 कार्प प्रजातियों में से लगभग 34 कार्प प्रजातियां बेहद ही किफायती हैं और मुख्य रूप से मछली पकड़ने से पैदा होती हैं, जबकि देश में कल्चर और कैप्चर मछली पालन दोनों से 10 कार्प प्रजातियां पैदा की जाती हैं. भारत को “कार्प देश” कहा जाता है. क्योंकि यहां प्राचीन काल से ही कार्प का पालन-पोषण किया जाता रहा है और इसकी गिनती देश में एक स्वादिष्ट फूड के तौर पर होती रही है.
कार्प जो भारत के सिंधु-गंगा में मुख्य रूप से पाई जाती हैं. इन्हें गैंगेटिक कार्प्स, इंडियन मेजर कार्प्स (IMC) के रूप में जाना जाता है, जिसमें कतला, रोहू शामिल है. वहीं मृगल भी कार्प मछली में से एक है. मृगल का कुल कार्प उत्पादन में 60 फीसदी का योगदान देती है. वहीं अन्य देशों से सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प और जैसे विदेशी कार्प को ज्यादा पाला जाता है. मेजर कार्प के अलावा, छोटी कार्प भी होती हैं. जिन्हें अक्सर माइनर कार्प कहा जाता है. इसमें रेबा (सिरहिनस रेबा), बाटा (लेबियो बाटा), फ्रिंज-लिप्ड कार्प (लेबियो फ़िम्ब्रिएटस), कैलबासु के रूप में (लेबियो कैलबासु), सफेद कार्प (सिरहिनस सिरहोसस) और कावेरी कार्प (लेबियो कोंटियस) शामिल हैं.
कैटफिश के बारे में पढ़ें यहां
कैटफिश पंख वाली मछलियों की कई वैयरायटी का एक ग्रुप है. ये एक बिल्ली की मूंछों जैसी होती हैं लेकिन सभी कैटफिश में प्रमुख बारबेल नहीं होती हैं. इन मछलियों के रहने की बात की जाए तो आम तौर पर तेज बहने वाली नदियों और झरनों में पाई जाती हैं. कैटफिश की कुछ प्रजातियों ने यहां पर खुद को ढाल लिया है. कुछ कैटफिश खारे पानी वाले वातावरण में रहना पसंद करती हैं. जबकि कई कैटफिश की प्रजातियां भूमिगत गुफाओं में भी रहती हैं, जहां पानी का सोर्स होता है.
जिंदा रहने पर मिलती है ज्यादा कीमत
अधिकांश कैटफिश नीचे से भोजन करने वाली होती हैं. क्योंकि वे नकारात्मक रूप से उत्प्लावक Swimmer होती हैं. इसका मतलब है कि गैस ब्लैडर कम होने और भारीपन के कारण वे आमतौर पर तैरने के बजाय डूबे रहना पसंद करती हैं. इनका हड्डीदार सिर होता है. मांगुर और सिंघी जैसी हवा में सांस लेने वाली कैटफ़िश उथले पानी में रहती हैं. कम ऑक्सीजन की स्थिति का सामना करती हैं. उन्हें “जीवित मछली” कहा जाता है. उनकी बिक्री जिंदा रहने पर की जाती है. अगर ये जिंदा रहती हैं तो कीमत भी ज्यादा मिलती है.
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