नई दिल्ली. देश में अब किसान फसलों पर ही निर्भर नहीं हैं. बकरी, भेड़ पालन में भी अच्छा बिजनेस कर रहे हैं. भारत में भेड़ों की करीब 44 नस्ल पाई जाती हैं. इनमें 3 नस्लों को किसानों के लिए फायदेमंद माना जाता है. कुछ भेड़ों को ऊन के लिए तो कुछ को मीट और दूध के लिए पाला जाता है. गंजम भेड़ को मीट के लिए विकसित किया गया था. ओडिशा के गंजम जिले से ताल्लुक रखने वाली इस नस्ल का औसत वजन 35 किलो तक होता है. इसके चलते इसे मीट के लिए पाला जाता है. किसान इस भेड़ को पालकर इसका मीट बेचकर अच्छी आमदनी कमा सकते हैं. खासतौर पर बहुत से इलाकों में और विदेशों में भेड़ का मीट बकरीद के त्योहार के मौके पर खूब पसंद किया जाता है.
बात की जाए गंजम नस्ल की भेड़ की तो ये एक दोहरे उद्देश्य वाली नस्ल मानी जाती है. जिसे दलुआ, बैगानी, गोला बकरी, लंका बकरी के नाम से भी जाना जाता है. इस नस्ल को गोला जनजाति ने विकसित किया है. इसका नाम इसके मूल स्थान यानी ओडिशा के गंजम जिले के नाम पर ही रखा गया था. ओडिशा के गंजम, रायगड़ा, गजपति, खुर्दा नयागढ़ जिले इस नस्ल के प्रजनन क्षेत्र बताए जाते हैं. यह नस्ल काली या भूरी.काली होती है. इनके रंग रूप की बात की जाए तो सफ़ेद, भूरे और चित्तीदार जानवर होते हैं. सींग मुड़े हुए और मुड़े हुए होते हैं.
मटन के लिए है बेहतर नस्ल: गंजम भेड़ मुख्य रूप से उडीशा के कोरापुट, फुलबनी और पुरी जिलों के कुछ हिस्सों में भी पाई जाती है. ऊन बालों वाला और छोटा होता है और कटा हुआ नहीं होता है. किसानों के झुंड में वार्षिक मेमने का प्रतिशत 83.6 और मृत्यु दर का प्रतिशत 10.35 दर्ज किया गया है. भेड़ सुधार पर नेटवर्क परियोजना के तहत, मटन के लिए उडीशा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, भुवनेश्वर में वर्ष 2001 में क्षेत्र आधारित गंजम इकाई शुरू की गई थी.
क्या खाती हैं भेड़: वैसे तो भेड़ों को हर तरह की जलवायु में पाला जा सकता है लेकिन अधिक गर्म इलाके भेंड़ों के लिए अच्छे नहीं माने जाते हैं. जबकि पहाड़ी और पठारी इलाकों की जलवायु भेड़ पालन के लिए उपयुक्त माना जाता है. भेड़ों के रखरखाव और खानपान में बहुत कम खर्च होता है. खेतों, पहाड़ों या कम उपजाऊ इलाकों में उगने वाला चारा ही उनके लिए पर्याप्त होता है. गाय या भैंस की तरह इसके लिए पशु आहार की जरुरत नहीं होता है.
Leave a comment