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Fisheries: मछलियों को खिलाएं ये फीड तो तेजी से होंगी बड़ी और बढ़ेगा वजन, होगा मोटा मुनाफा

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प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. मछलियों की अच्छी ग्रोथ के लिए उन्हें चारे के रूप में गाय भैंस समेत किसी भी जानवर का गोबर दिया जा सकता है. गाय और भैंस के गोबर को सीधे तालाब में डाल देने से भी मछलियों को उनका आहार मिल जाता है. हालांकि बकरी के मल का इस्तेमाल करना है तो इसका चूरन बनाकर उसमें डालना चाहिए. क्योंकि यह कड़ा होने के कारण पानी में जल्दी नहीं घुलता है. एक्सपर्ट का कहना है कि मछलियों को गाय और भैंस का गोबर देने से मछलियों की ग्रोथ तेजी से होती है क्योंकि इससे उन्हें तमाम जरूरी पोषक तत्व मिल जाते हैं.

मछलियों के पानी में मिलने वाले पोषक तत्वों पर पलने की बात तो सभी जानते हैं लेकिन गोबर पर भी मछलियों को पाला जा सकता है. यह मुमकिन हो सका है इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चर रिसर्च (ICAR) के वैज्ञानिकों की वजह से. उनके रिसर्च में यह बात साबित हो चुकी है कि गोबर में मौजूद तत्व भी मछलियों की ग्रोथ को बढ़ा देते हैं. ICAR ने गोबर से मछलियों का देसी खाद भी तैयार की है. बताते चलें कि इस रिसर्च का सबसे बड़ा फायदा गरीब मछली पालकों को हुआ है. वह आसानी के साथ इसका इस्तेमाल करके मछलियों की अच्छी ग्रोथ और प्रोडक्शन ले सकते हैं.

तालाब में कितना गोबार डालना चाहिए
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि गोबर में नाइट्रोजन की मात्रा ज्यादा होती है इस वजह से ज्यादातर भाग पानी में प्रतिक्रिया कर प्लैंक्टन में बदल जाता है. इसे खाकर मछलियां तेजी से बड़ी होती हैं और इनका वजन भी तेजी के साथ बढ़ जाता है. जिसका फायदा सीधी तौर पर किसानों को मिलता है. जब किसान मछलियों को बेचने के लिए जाते हैं तो वजन ज्यादा होने की वजह से मछलियों का दाम भी किसानों को ज्यादा मिलता है. एक्सपर्ट की मानें तो छोटी मछली डालते वक्त तालाब में गोबार का 2000 किलो का पहला डोज डालना चाहिए. उसके बाद हर महीने 1000 किलो गोबर की जरूरत पड़ती है. एक भैंस से प्रतिदिन 20 से 22 किलो जबकि गए से 14 से 18 किलो गोबर मिलता है. ऐसे में एक हेक्टेयर में खेती के लिए तीन से पांच भैंस 5 से 7 गाय या 50 से 60 बकरियों की जरूरत पड़ती है. जिससे मछलियों के लिए पर्याप्त चारा मिल जाता है.

कहां भोजन तालश करती हैं मछलियां
आपके यहां यह भी बताते चलें कि 5 से 6 फीट की गहराई में रहने वाली मछलियां सबसे तेज बढ़ती हैं. क्योंकि उन्हें सूरज की रोशनी पानी से छन-छन कर मिलती रहती है और इस गहराई तक प्लैंक्टन पाई जाती है. पानी के अलग-अलग स्तरों में प्लैंक्टन की मात्रा में फर्क होता है. ऊपरी सतह में अधिक उपलब्धता होती है. जबकि निचली सतह में कम होती है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कामन कार्प और कत्ला मछली ऊपरी सतह में भोजन तलाश करती हैं. ग्रास कार्प और रोहू मध्य स्तर में और वहीं सिल्वर कार्प और नैनी निचले स्तर में भोजन की तलाश करती हैं.

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