नई दिल्ली. प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) की शुरुआत साल 2020 में सरकार (Central Government) की तरफ से की गई है. इसके तहत सरकार की ओर से कई काम किए गए हैं. जिसमें महिलाओं को सशक्त बनाया गया है. वहीं टेक्नोलॉजी के जरिए मछली पालन (Fish Farming) के लिए जलवायु को अनुकूल बनाया गया और मछली उत्पादन (Fish Production) को बढ़ावा दिया गया है. साथ ही बायोफ्लॉक जैसी नई तकनीक को मछली पालन में बढ़ावा दिया गया, जिससे मछली उत्पादन बढ़ा और मछली पालन करने वालों की संख्या भी बढ़ी.
एक्सपर्ट का कहना है कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना PMMSY योजना फिशरीज सेक्टर के लिए बेहद ही अच्छी साबित हुई है. इसी के बारे आइए यहां जानते हैं.
मत्स्य पालन में महिलाओं को आगे बढ़ाया
पीएमएमएसवाई लाभार्थी गतिविधियों और बिजनेस मॉडल के तहत वित्तीय सहायता (1.5 करोड़ रुपये, परियोजना तक) के रूप में कुल परियोजना लागत का 60 प्रतिशत तक प्रदान करके मछली पालन में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देता है.
2020-21 से 2024-25 तक, 99,018 महिलाओं के साथ 4,061.96 करोड़ रुपये के प्रस्तावों को स्वीकृति दी गई.
राज्यों ने महिला लाभार्थियों को समर्पित वित्तीय सहायता के साथ व्यापक प्रशिक्षण, जागरूकता और क्षमता निर्माण पहल की है.
प्रौद्योगिकी के माध्यम से जलवायु को अनुकूल बनाना
पीएमएमएसवाई के तहत मत्स्य पालन विभाग ने मछुआरों के 100 तटीय गांवों की जलवायु अनुकूल तटीय मछुआरा ग्राम (सीआरसीएफवी) के रूप में पहचान की है.
ताकि उन्हें जलवायु की सामर्थ्य के अनुकूल और आर्थिक रूप से मजबूत बनाया जा सके. 3,040.87 करोड़ रुपये के कुल निवेश के साथ जलाशयों में मछलियों के लिए 52,058 तैरते हुए पिंजरों को मंजूरी दी.
वहीं 22,057 रिसर्कुलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम (आरएएस) और बायोफ्लॉक इकाइयों और रेसवे तथा 1,525 समुद्री पिंजरे लगाने की स्वीकृति दी है. इसके साथ टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया गया.
बायोफ्लॉक टेक्नोलॉजी
बायोफ्लॉक टेक्नोलॉजी दीर्घकालिक मछली पालन विधि है जो लाभकारी सूक्ष्म जीवों का उपयोग करके पानी में पोषक तत्वों का रीसाइकलिंग करती है. ये सूक्ष्म जीव बायोफ्लॉक नाम के गुच्छे बनाते हैं जो प्राकृतिक भोजन के रूप में काम करते हैं.
पानी को साफ करने में भी मदद करते हैं. इस विधि में पानी के बहुत कम या नहीं के बराबर बदलाव की आवश्यकता होती है जो इसे न्यूनतम संसाधनों के साथ बड़े पैमाने पर मछली पालन के लिए आदर्श बनाती है.
पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ-साथ इसमें उत्पादकता में भी वृद्धि होती है. इसे मछली पालन के क्षेत्र में “हरे सूप” या “हेटरोट्रॉफिक तालाब” नाम दिया गया है.
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