नई दिल्ली. जब ज्यादा ठंड पड़ने लगती है तो मनुष्य, जीव-जंतु सभी को दिक्कतें होने लगती है. ऐसे में मछली पालन भी एक मुश्किल टास्क हो जाता है. जनवरी माह में मत्स्य पालकों द्वारा मछली पालन के दौरान कुछ बातों का ध्यान जरूर देना चाहिए. जिससे उनकी मछली को नुकसान न हो और इससे उनके कारोबार पर भी असर न पड़े. हाल ही में बिहार सरकार के पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग ने जनवरी माह में मछलियों को होने वाली दिक्कतों से बचने के लिए कुछ टिप्स जारी किए उनके बारे में जानते हैं.
ऐसी स्थिति में सप्लीमेंट न दें
पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग बिहार की ओर से जारी की गई गाइडलाइन में कहा गया है कि औसतन तापमान 15 डिग्री सेल्सियस से कम होने पर यदि मछली पूरक आहार ग्रहण नहीं करती तो पूरक आहार का प्रयोग बंद कर दें. ठंड के मौसम में प्राकृतिक आहार की उपलब्धता तालाब में बनाने हेतु प्रति एकड़ प्रत्येक 10 से 15 दिनों के अंतराल पर 15 किलो चूना, 15 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 5 किलोग्राम मिनरल मिक्चर और 50 किलोग्राम सरसों या राई की खली पानी में घोलकर तालाब में छिड़काव करना चाहिए. मत्स्य बीज उत्पादक कॉमन कार्प का ब्रीडिंग जनवरी के अंतिम सप्ताह या फरवरी से प्रारंभ करने के लिए 15 से 20 दिन पूर्व नर एवं मादा कॉमन कार्प के प्रजनक मछली ब्रूड को दो अलग-अलग तालाबों में संचयन कर लें.
इन बातों का भी रखें ध्यान
प्रजनक मछली ब्रूड को आरगुल्स के संक्रमण से बचाने के लिए 80 से 100 एमएल, प्रति एकड़ की दर से बुटॉक्स या क्लीयर टिनिक्स का छिड़काव दिन में 10 बजे से दोपहर 2 बजे के दरमियान करना चाहिए. ठंड के मौसम में मछलियों को पॉरासाइटिक संक्रमण एवं फंफूद से होने वाली संक्रमण से बचाव के लिए 40 से 50 प्रति किलोग्राम, प्रति एकड़ की दर से नमक का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए. वीकेसी दवा 1 लीटर, प्रति एकड़ की दर से घोलकर छिड़काव करें. ठंड के मौसम में कार्प मछली वाली तालाब में न्यूनतम पानी का स्तर 5 से 6 फीट एवं पंगेशियस मछली वाली तालाब की न्यूनतम पानी का स्तर 8 से 10 फिट बनाए रखना चाहिए. पंगेशियस के तालाबों में प्रतिदिन 10 से 20 फीसदी तक पानी का बदलाव ट्यूबेल के पानी से करें. तापमान अधिक गिरने एवं कोहरा छा जाने की स्थिति में तालाब में किसी तरह का छिड़काव क्रियाकलाप, यानी संप्लीमेंट आहार चूना, खाद गोबर दवा आदि का छिड़काव बंद कर दें.
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