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Fisheries: स्पेस टेक्नोलॉजी की मदद से मछली पकड़ रहे मछुआरे, जानें कैसे

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मछली पकड़ते मछुआरे (फोटो CMFRI)

नई दिल्ली. भारत सरकार ने चंद्रयान-3 मिशन की कामयाबी का जश्न मनाने के लिए 23 अगस्त को “राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस” घोषित किया है. बताते चलें की चंद्रयान-3 की मिली सफलता के कारण अब स्पेस टेक्नोलॉजी की मदद से मछुआरे मछली पकड़ रहे हैं. जिसका फायदा इस सेक्टर को मिल रहा है. वहीं इसी क्रम में केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी तथा पंचायती राज मंत्री राजीव रंजन सिंह कृषि भवन, नई दिल्ली में मत्स्यपालन विभाग द्वारा आयोजित “राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस समारोह” कार्यक्रम में शामिल होंगे. जहां उनके साथ मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी तथा पंचायती राज राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल और जॉर्ज कुरियन, मत्स्यपालन विभाग के सचिव डॉ. अभिलाष लिखी भी मौजूद होंगे.

चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के उपलक्ष्य में मत्स्यपालन विभाग डॉ. अभिलाष लिखी के मार्गदर्शन में तटीय राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों में “मत्स्यपालन क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के प्रयोग” पर सेमिनार और प्रदर्शनों की श्रृंखला आयोजित होगी. ये सेमिनार तथा प्रदर्शन 18 स्थानों पर आयोजित किए जा रहे हैं, जिनमें मत्स्यपालन में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी – एक सिंहावलोकन, समुद्री क्षेत्र के लिए संचार एवं नेविगेशन प्रणाली, अंतरिक्ष आधारित अवलोकन तथा मत्स्यपालन क्षेत्र में सुधार पर इसके प्रभाव जैसे विषय शामिल हैं. वहीं अंतरिक्ष विभाग, आईएनसीओआईएस, न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड और मछुआरे, सागर मित्र, एफएफपीओ, मत्स्य सहकारी समितियां, आईसीएआर मत्स्य अनुसंधान संस्थान, राज्य/संघ राज्य क्षेत्र मत्स्य विभाग, मत्स्य विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के छात्र व अन्य हाइब्रिड मोड में भाग लेंगे.

तकनीक ने किए हैं कई बदलाव
गौरतलब है कि भारतीय मत्स्य पालन क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाता है, खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में जीविका, रोजगार और आर्थिक अवसर प्रदान करने में इसका अहम रोला है. 8,118 किलोमीटर तक फैली तटरेखा, 2.02 मिलियन वर्ग किलोमीटर में फैले एक बड़े विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) और अंतर्देशीय जल संसाधनों के साथ, भारत एक समृद्ध और समृद्ध मत्स्य पालन ईकोलौजी का प्रदर्शन करता है. एक्सपर्ट का कहना है कि स्पेस टेक्नोलॉजी भारतीय समुद्री मत्स्य मैनेजमेंट और डेवलपमेंट को अहम रूप से बढ़ा सकती हैं. सैटेलाइट रिमोट सेंसिंग, ऑब्जर्वेशन, सैटेलाइट आधारित नेविगेशन सिस्टम और जीआईएस, सैटेलाइट कम्युनिकेशन, डेटा एनालिटिक्स और एआई आदि जैसी कुछ तकनीकों ने इस क्षेत्र में कई बदलाव लाए हैं.

मौसमी खतरों की हो रही निगरानी
सैटेलाइट रिमोट सेंसिंग संभावित मछली पकड़ने के मैदानों की पहचान करने और महासागर के हैल्थ को समझने के लिए फाइटोप्लांकटन ब्लूम, तलछट और प्रदूषकों का पता लगाने के लिए महासागर के रंग, क्लोरोफिल सामग्री और समुद्र की सतह के तापमान पर नजर रखने के लिए ओशन-सैट और इनसैट जैसे उपग्रहों का उपयोग करता है. मछली पकड़ने के संचालन को अनुकूलित करने और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए समुद्री धाराओं, तरंगों और चरम मौसम के खतरों की निगरानी करने के लिए इनसैट, ओशन-सैट, एसएआर आदि जैसे उपग्रहों का फायदा उठाते हैं. सैटेलाइट आधारित नेविगेशन सिस्टम और जीआईएस भारतीय नक्षत्र (नाविक) के साथ नेविगेशन का उपयोग करता है जो मछली पकड़ने के जहाजों के लिए जीएनएसएस ट्रैकिंग और समुद्री आवास, मछली पकड़ने के मैदान और संरक्षित क्षेत्रों को पहचानने के लिए जीआईएस मैपिंग सक्षम करता है.

अवैध गतिविधियों का भी चलता है पता
ये टेक्नोलॉजी उपग्रह निगरानी के जरिए से समुद्र में दक्षता और सुरक्षा को बढ़ाती हैं और अवैध गतिविधियों का पता लगाती हैं, एक्वा मैपिंग का समर्थन करती हैं और आपदा चेतावनी देती हैंत्र इसके अतिरिक्त, इमेज सेंसिंग और एक्वा ज़ोनिंग जैसी टेक्नोलॉजी प्रभावी मत्स्य प्रबंधन के लिए सटीक उपकरण प्रदान करती हैं. संभावित मत्स्य पालन क्षेत्र (PFZ) सलाह ने समुद्री मत्स्य पालन क्षेत्र में उल्लेखनीय बदलाव लाए हैं. ओशन-सैट उपग्रह से महासागर रंग मॉनिटर डेटा प्राप्त करके, मछली इकट्ठा करने के संभावित झुंडों की पहचान की जाती है और मछुआरों को प्रसारित किया जाता है. इन PFZ सलाहों ने भारत की अनुमानित समुद्री मत्स्य पालन क्षमता को 2014 में 3.49 लाख टन से बढ़ाकर 2023 में 5.31 लाख टन कर दिया है. इसने मछुआरों को बेहतर पकड़ का पता लगाने और कुशलता के साथ पकड़ने में सक्षम बनाया है, जिससे समुद्र में बिताए गए समय और प्रयास में कमी आई है और साथ ही समुद्री संसाधनों के स्थायी प्रबंधन में भी योगदान दिया है.

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