नई दिल्ली. गर्मी की शुरुआत होते ही जगह-जगह चारे की कमी हो जाती है. ऐसे में किसानों को बहुत ही मुश्किल से पशुओं के लिए चारा मिल पाता. ऐसे में पशुओं को पौष्टिक और हरा चारा कहां से लाएं. इसे लेकर पशुपालक बहुत ज्यादा परेशान रहते हैं. अगर आपके सामने ऐसी मुश्किल खड़ी हो जाए तो घबराने की जरूरत नहीं. आप मोरंगा के बारे में तो जानते ही होंगे. अगर नहीं तो हम बताते हैं कि गर्मी में ये मोरिंग कैसे चारेकी कमी को दूर करेगा. मोरिंग के फायदे भी बहुत हैं. सरकार इसे उगाने के लिए जोर भी दे रही है. ये पौधा पोषक तत्वों से भरपूर होता है. सरकार किसानों से अपील कर रही है कि इस फसल को उगाकर कम लागत में ज्यादा लाभ कमा सकते हैं.
ग्रामीण परिवेश में पशुपालन आम सी बात है, लेकिन अब ये पशुपालन बडे व्यवसाय के रूप में उभरकर सामने आया है. मगर, कभी-कभी पशुपालकों के सामने चारे की भीषण समस्या पैदा हो जाती है. इस बार भी ऐसे देखने को मिल रहा है कि देश के कई क्षेत्रों में सूखे की स्थिति होने की वजह से खरीफ और रबी दोनों सीजन में हरे चारे की समस्या गंभीर हो गई है. खराब गुणवत्ता वाले चारे के कारण बहुत से पशुओं के शरीर में कैल्शियम का स्तर कम होने लगा है. ऐसे में ये मोरिंगा पशुओं में चारे की कमी को दूर करेगा और भरपूर कैल्शियम की पूर्ति भी करेगा. इसलिए गर्मी में इस मोरिंगा की फसल को जरूर करें, इसमें कैल्शियम की मात्रा बहुत होती है. इससे पशुओं में दूध भी बढ़ेगा. इस चारे को पांच साल की रिसर्च के बाद केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के वैज्ञानिकों ने भी तैयार किया है. वैज्ञानिक का कहना है कि भेले ही मोरिंगा एक पेड़ होता है. लेकिन कुछ खास बातों का ध्यान रखने पर इसकी पत्तियों के साथ इसके तने को भी चारे के रूप में पशुओं को खिलाया जा सकता है.
ऐसे करें मोरिंग की खेती
वैज्ञानिक डॉक्टर मोहम्मद आरिफ ने बताया कि मोरिंगा को बरसात के सीजन में लगाया जाए तो ज्यादा बेहतर है. बारिश में ये बड़े ही आसानी से लग जाता है. अभी गर्मी का मौसम है. अब से लेकर जुलाई तक मोरिंगा लगाना शुरू कर दिया जाए तो लाभकारी होगा. ख्याल यह रखना है कि इसे पेड़ नहीं बनने देना है. इसके लिए यह जरूरी है कि 30 से 45 सेंटी मीटर की दूरी पर इसकी बुवाई की जाए. इसकी पहली कटाई तीन महीने बाद करनी है. तीन महीने में यह आठ से नौ फीट की हाईट पर आ जाता है. इसी तरह से पहली कटाई 90 दिन में करने के बाद इसकी कटाई हर 60 दिन बाद करनी है. इसकी कटाई जमीन से एक-डेढ़ फीस की हाइट से करनी है. मोरिंगा की पत्तियों के साथ ही तने को भी बकरियां बड़े चाव से खाती हैं. चाहें तो पशुपालक पहले बकरियों को पत्तियां खिला सकते हैं. इसके तने को अलग रखकर उसके पैलेट्स बना सकते हैं. पैलेट्स बनाने का एक अलग तरीका है. ऐसा करके आप बकरे और बकरियों के लिए पूरे साल के चारे का इंतजाम कर सकते हैं.
क्या है मोरिंगा
मोरिंगा यानी सहजन में कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते हैं. इसलिए इसका उपयोग कई तरह से किया जाता है. अगर आधुनिक तरीके से मोरिंगा की खेती को किया जाए तो किसानों को काफी अच्छा लाभ प्राप्त होता है. सहजन की सबसे खास बात ये है कि इसकी खेती बंजर जमीन में भी हो सकती है. इसके अलावा इसकी खेती अन्य फसलों के साथ भी आसानी से की खेती की जा सकती है.
ये हैं मोरिंगा की किस्म
रोहित-1: मोरिंगा की इस वैरायटी की सबसे अच्छी खासियत ये है कि इसे उगाने के 4-6 महीने के बाद फल देना शुरू कर देती है. इससे करीब 10 साल तक फल मिलता है. इस खेती से किसान एक साल में आसानी से दो फसल प्राप्त कर सकते हैं.
कोयंबटूर-2: मोरिंगा की इस नस्ल की फली का रंग गहरा हरा और बेहद जायकेदार होता है. पौधा करीब तीन से चार साल तक उपज देता है.
पीएमके-1: पीकेएम-1 किस्म, मोरिंगा यानी सहजन की एक बहुत उन्नत किस्म मानी जाती है. अन्य किस्मों की तुलना में इसकी फली का स्वाद काफी बेहतर होता है.पौधों से लगातार चार साल तक फली मिलती रहती है. इसके पेड़ में 90 से 100 दिनों बाद फूल आना शुरू हो जाता है. इस पेड़ से करीब चार साल तक फली मिलती रहती है. इसकी खेती करना किसानों के लिए बेहद फायदेमंद होता है.
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