नई दिल्ली. एक तरफ इंसानों की जनसंख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. तो वहीं दूसरी ओर इसकी वजह से किसानों और पशुपालकों द्वारा खाद्यान्न फसलों को प्राथमिकता दिये जाने से चारा फसलों के क्षेत्रफल में लगातार कमी हो रही है. जिससे पशुओं के लिए जरूरत के मुताबिक हरे चारे की उपलब्धता एक समस्या बन गई है. इसके चलते पशुओं के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. इसका नुकसान यूं भी होता है कि पशु अपनी नस्ल क्षमता के मुताबिक उत्पादन नहीं कर पाते हैं. जिसकी वजह से प्रत्यक्ष रूप से किसान की आमदनी और अप्रत्यक्ष रूप से प्रदेश की आर्थिक व्यवस्था प्रभावित हो रही है.
यूपी सरकार की ओर से जारी किये गये आंकड़ों के मुताबिक साल 2019 की पशुगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में 190.19 लाख गोवंशीय पशु, 330.16 लाख महिषवंशीय पशु, 9.84 लाख भेड़, 144.80 लाख है. जबकि इन पशुओं को जितनी मात्रा में चारा चाहिए, वो उपलब्ध नहीं है.
कितने फीसद चारे की है कमी, पढ़ें यहां
प्रदेश में पाये जाने कुल पशुधन संख्या के लिए आवश्यक हरे चारे, सूखे चारे और दाने की सभी सोर्स को मिलाकर कुल आंकलित उपलब्धता लगभग 55.85 प्रतिशत हरा चारा, 78.89 प्रतिशत सूखा चारा और 13.43 प्रतिशत दाना ही प्राप्त हो पाता है. इस प्रकार 44.15 प्रतिशत हरे चारे, 21.11 प्रतिशत सूखे चारे एवं 84.57 प्रतिशत दाने की कमी है. प्रदेश में पाये जाने वाले कुल पशुधन संख्या को केवल हरे चारा उपलब्ध कराने के लिए प्रदेश के अन्तर्गत कुल कृषिकृत क्षेत्रफल का लगभग 8.19 प्रतिशत (14.00 लाख हेक्टेयर) क्षेत्रफल की आवश्यकता होगी. मौजूदा वक्त में खरीफ में 4 लाख 45 हजार 310 हेक्टेयर, रबी में 1 लाख 70 हजार 112 हेक्टेयर और जायद में 1 लाख 55 हजार 154 हेक्टेयर क्षेत्रफल तथा कुल मिलाकर 7 लाख 70 हजार 576 हेक्टेयर क्षेत्रफल में चारा फसलों की खेती की जा रही है. यूपी में कुल बोये जाने वाले कृषि क्षेत्रफल का लगभग 4.64 प्रतिशत हिस्सा (लगभग 7.70 लाख हेक्टेयर) ही चारा उत्पादन के प्रयोग में लाया जाता है.
सरकार के सामने है ये बड़ी चुनौती
बताते चलें कि प्रदेश में उपलब्ध चारा क्षेत्रफल का लगभग 78.28 प्रतिशत (6.03 लाख हेक्टेयर) भाग सिंचित है. चारे के तहत सीमित भूमि उपलब्ध होने के कारण प्रदेश में आवश्कता के सापेक्ष चारे की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए चारा क्षेत्रफल में विस्तार किये जाने की जरूरत है. उच्च गुणवत्तायुक्त चारा बीज की उपलब्धता सुनिश्चित करना तथा खेती की आधुनिक प्रणाली (मिश्रित एवं अन्रवर्ती खेती) अपनाकर चारा उत्पादन किया जाना सकारात्मक विकल्प है. गुणवत्तायुक्त उन्नतशील प्रजातियों के चारा बीजों की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित कराना एक बहुत बड़ी चुनौती है. अधिकांश चारा फसलें चारा बीज उत्पादन में फायदेमंद न होने के कारण किसानों और पशुपालकों द्वारा खेती करने में रूचि नही ली जाती है. चारा बीजों की सुनिश्चित खरीद के साथ-साथ फायदेमंद मूल्य प्राप्त न होना भी मुख्य समस्या है.
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