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Poultry Disease : चूजों के लिए जानलेवा है फाऊल कॉलेरा, यहां पढ़ें क्या है इस बीमारी का इलाज

पोल्ट्री के बिजनेस में बीमारियां रोक लीं तो ये मुनाफे का सौदा होता है.
चूजों का प्रतीकात्मक फोटो: Livestockanimalnews

नई दिल्ली. पोल्ट्री पालन करने वाले कारोबारी ये जानते ही होंगे कि अक्सर चूजों को फाऊल कॉलेरा नाम की बीमारी हो जाती है और इस बीमारी में मौत बहुत जल्दी हो जाती है. मौत बहुत जल्दी हो जाने का मतलब ये है कि पोल्ट्री कारोबार को नुकसान. एक्सपर्ट कहते हैं कि फाऊल कॉलेरा को पुल्लोरम बीमरी या बेसिलरी सफेद दस्त भी कहा जाता है. नए चूजे जो 3 सप्ताह से भी कम आयु के होते हैं वो इस रोग से ग्रसित होते हैं. अधिक मृत्यु दर इस रोग की विशेषता है.

साल्मोनेला पुल्लोरम जीवाणु फाऊल कॉलेरा का कारण है. यह एक गैर गतिशील, ग्राम-नेगेटिव और रॉड के आकार का जीवाणु है जो अनुकुल वातावरण में कई वर्षों तक जीवित रह सकता है. इस रोग का प्रसार रोग ग्रसित माता के अंडों द्वारा होता है. इसके अलावा कुक्कुट गृह में चूजा उत्पादन के कार्य में उपयोग होने वाले उपकरण, संक्रमित चूहे, वनीय पक्षी, खाद्य सामग्री एवम् पानी भी इस रोग के प्रसार में सहायक होते हैं.

बीमारी की पहचान कैसे करें: नए चूज़ों की अचानक मौत, उर्वरक अंडे के अंदर विकसित मृत चूजे का होना या कोई भी लक्षण दिखाए बिना चूजाें की मौत हो जाना सामान्य है. जानकारी के लिए बता दें कि संक्रमित चूजे प्रकाश एवं ऊर्जा के स्थान के निकट एकत्रित हो जाते हैं. ऐसे चूजों का सुस्त एवं नींद में दिखना, पंख नीचे करके रखना, भूख नहीं लगना, दस्त होना, गीला रहना, चूजों का बार बार पानी पीना, पेट का फूलना, शारीरिक वजन दिन व दिन कम होते जाना, टखने में सूजन होना, बड़ी मुर्गियों द्वारा कम खाना खाना, मूर्छित रहना एवं सूख जाना जैसे लक्षण होते हैं.

सफेद दस्त भी होने लगता है: चूजे में बिना किसी क्लिनिकल लक्षण के उच्च मृत्यु दर का होना और सफेद दस्त बीमारी के पहचान में सहायक होता है. पोस्टमार्टम करने पर पीले या ग्रे रंग की गांठ कई अंगों में पायी जाती है. जैसे फेफड़े, जिगर, हृदय, एवं गिज़ार्ड में नेफ्रोटिक फोकाई का पाया जाना, चूज़े में जमा हुआ योक का मिलना इस रोग को दर्शाता है. वयस्क पक्षियों में विकृत, जमा हुआ योक एवं फटा अंडाशय इस रोग का परिचक होता है.

रोग का इलाज और रोकथाम: इस बीमारी का नियंत्रण सल्फोनामाईड, नाईट्रोफुरांस, टेट्रासाइक्लीन, अमीनोग्लाइकोसाईड्स इत्यादि औषधि से किया जाता है. ये औषधियां इस रोग को पक्षी समूह से पूरी तरह समाप्त नहीं कर सकते. चूज़े, हर समय साल्मोनेला मुक्त कुक्कुट गृह से ही क्रय करना चाहिए। खाद्य पदार्थ एवं पानी भी साल्मोनेला खत्म होना चाहिए. खाद्य सामग्री सल्मोनेली से मुक्त होनी चाहिए और चूहों के पहुंच से बाहर होनी चाहिए. इस बीमारी के रोकथाम का फार्म एवं चूज़ा गृह का कुशल प्रबंधन एवं कड़ाई से जैव सुरक्षा का पालन ही सबसे बेहतर तरीका है. संक्रमित फार्म एवं उपकरण का 2 प्रतिशत कॉस्टिक पोटाश, फिनॉल (1:1000) या 3 प्रतिशत फॉर्मलीन द्वारा धोने से संक्रमण से बचा जा सकता है.

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