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Goat Farming: ज्यादा रसीला चारा खाने पर बकरी को हो जाती है ये खतरनाक बीमारी

sojat goat breed
सोजत बकरियों की प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. बकरी पालन भले ही सीमांत किसानों और भूमिहीन किसानों के लिए फायदे का व्यवसाय है, लेकिन इसमें मुनाफा तभी होगा जब इसके पालन को लेकर किसान को तमाम जानकारी होगी. खास करके बकरी के खाने-पीने को लेकर सटीक जानकारी होनी चाहिए. इसके साथ ही उसके रख रखाव आदि के बारे में भी किसान को पता होना चाहिए. तभी इस व्यवसाय में फायदा होगा. इस आर्टिकल में हम आपको बकरी के खाने-पीने के संबंध में कुछ अहम जानकारी दे रहे हैं, जो बकरी लिए बेहद ही कारगर साबित होगा और उसे बीमारी से बचाया भी जा सकेगा.

बकरियों के लिए हरा चारा है बेहतर
एक्सपर्ट कहते हैं कि न केवल बकरियों को बल्कि गाय भैंस के आहार में भी हरा चारा खास होता है. हरे चारे में प्रोटीन, खनिज, लवण व विटामिन की प्रचुर मात्रा होती है. बकरियां द्वारा खाए जाने वाला हरा चारा कई रूपों में उपलब्ध है. कई प्रकार की घास, पेड़, पौधे की पत्तियां फलिया, पत्तेदार सब्जियां, बरसीम आदि बकरियों के लिए अच्छा चारा है. अच्छा चारागाह झाड़ियां और पौष्टिक हरा चारा उपलब्ध हो तो दान मिश्रण देने की आवश्यकता नहीं होती है. जबकि अन्य परिस्थितियों में 100 ग्राम दाना देना चाहिए.

कैसे खाना बकरियों को दें
एक्सपर्ट की मानें तो प्रजनन काल के दौरान नर को 200 ग्राम, गर्भवती बकरियों को 200 ग्राम अंतिम 60 दिन और 1 लीटर प्रतिदिन दूध देने वाली बकरियां को 250 ग्राम अनाज मिश्रण देना चाहिए. अनाज मिश्रण बनाने के लिए स्थानीय उपलब्धता के आधार पर कोई भी अनाज 60 फीसदी डालें. इसमें दालें 20 फीसदी, खली 25 फीसदी, गेहूं या भूसी या चावल की भूसी 10%, खनिज मिश्रण 2% और साधारण नमक से तैयार करें. बकरियों का चारा धीरे-धीरे बदल देना चाहिए और बकरियों को बरसीम, लुसर्न, लोबिया जैसे रसीला चारा अधिक नहीं देना चाहिए. इससे बकरियों का अफारा रोग हो सकता है.

अफरा रोग हो जाता है
सुबह-सुबह जब घास पर ओस जमा हो जाए तो उस क्षेत्र में बकरी को चरने के लिए न भेजें. इससे और एंडोपरैसाइट्स का प्रकोप हो जाता है. अफरा रोग पशुओं में होने वाली एक बहुत ही खतरनाक बीमारी है. यह बीमारी पशुओं का लग जाए तो पशुओं की मृत्यु भी हो सकती है. इस रोग में जब पशु अधिक हरा चारा खाते हैं तो उन्हें पेट में दूषित गैस से कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड, नाइट्रोजन और अमोनिया आदि जमा हो जाती है और उनका पेट फूल जाता है. जिस वजह से पशु बेचैन हो जाते हैं इस रोग को अफरा या अफारा रोग भी कहा जाता है.

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