नई दिल्ली. भारत में ज्यादातर बकरी पालन मांस उत्पादन के लिये किया जाता है. जो तभी संभव हो पाता है जब प्रति बकरी प्रति वर्ष एक या उससे ज्यादा बच्चों को पैदा करे और इससे मीट का प्रोडक्शन हो. नवजात मेमनों की ज्यादा से ज्यादा उत्पादकता, जिंदा रहने की दर और उनके वजन में बढ़वार दर पर भी ये बात निर्भर करती है. परम्परागत बकरी पालन व्यवसाय में नवजात बच्चों की अत्यधिक मृत्युदर 20-35 फीसदी और शारीरिक भार वृद्धि दर में क्षमता में 20 से 40 फीसदी की कमी एक मुख्य समस्या है. बकरी पालन तभी फायदा हो सकता है. जब प्रति बकरी प्रति वर्ष नस्ल के अनुरूप न केवल अधिकतम बच्चे पैदा हों बल्कि वे जिंदा भी रहें.
एक्सपर्ट का कहना है कि बकरी का प्रतिदिन शरीर भार वृद्धि दर भी उत्तम 70-100 ग्राम प्रति दिन होना चाहिए. आंकड़े बताते हैं कि नवजात बकरी के बच्चों की अत्यधिक मृत्युदर के कारण बकरी पालकों को 30-40 प्रतिशत कम फायदा मिलता है. नवजात मेमनों के सर्वाधिक सावधानी वाला समय जन्म लेने से दो-तीन सप्ताह बाद तक होता है. हालांकि 3 माह तक विशेष सावधानी बरतनी चाहिए. अगर मेमने जन्म से 3-4 माह तक जल्दी-जल्दी बीमार होते रहें तो आगे जीवन में उनकी बढ़वार दर में भारी कमी होती है.
फीड देने में करें बदलाव
नवजात मेमनों का उत्तम स्वास्थ्य प्रबन्धन द्वारा मृत्यु दर में कमी तथा बेहतर शारीरिक भार में इजाफा एक विशेष प्रबन्धन तकनीक है जो बकरियों को गर्भित कराने से शुरू हो जाती है. इस आर्टिकल में इन्हीं मसलों पर आपको बताया जा रहा है. जिन्हें ध्यान में रखकर और अपनाकर बकरी पालक प्रति वर्ष हर एक बकरी पर अधिकतम बच्चे का उत्पादन करते हुए ज्यादा से ज्यादा फायदा कमा सकते हैं. एक्सपर्ट का कहना है कि बकरी के भ्रूण का लगभग 70 प्रतिशत विकास गर्भावस्था के आखिर के 45-50 दिनों में होता है. इसलिए बकरी पालक को इस अवधि में जीवन यापन (मेन्टीनेन्स) के अतिरिक्त 200-250, 300-400, 400-500 ग्राम दाना क्रमशः छोटे, मध्यम, एवं बड़े आकार की बकरियों को देना चाहिए.
बकरियां लंबे समय तक देती हैं दूध
ऐसा करने पर बकरियों के नीचे दूध खीस अधिक बनेगा जो बच्चों में रोग प्रतिरोधक शक्ति और बढ़वार दर को बढ़ाने में मददगार होगा. जिसके नतीजे में बकरी के बच्चे जन्म के समय अधिक वजन के पैदा होंगे. अधिक वजन के जन्मे बच्चों में शारीरिक भार वृद्धि और बीमारियां कम होती हैं. मृत्युदर लगभग नहीं रहती है. वहीं उनकी शारीरिक बढ़वार दर (वजन) सामान्य बच्चों से 10-30 प्रतिशत अधिक रहती है. जो बच्चे जन्म के समय कम वजन के एवं कमजोर पैदा होते हैं उनमें मृत्यु की संभावना अधिक रहती है. उचित देखभाल और खान-पान के बावजूद भी ऐसे बच्चों के शारीरिक भार में निम्न स्तर की बढ़वार दर होती है. गर्भित बकरियों को संतुलित दाना-भूसा व चारा खिलाने से वे लम्बी अवधि तक दूध देती हैं.
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