Home पशुपालन Green Fodder: गर्मियों में हरा चारा हो जाता है जहरीला, जानें क्या है इसकी वजह, इसका ‘इलाज’ भी पढ़ें
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Green Fodder: गर्मियों में हरा चारा हो जाता है जहरीला, जानें क्या है इसकी वजह, इसका ‘इलाज’ भी पढ़ें

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प्रतीकात्मक फोटो.

नई दिल्ली. गर्मियों का आगाज होते ही पशुओं के लिए चारे की कमी हो जाती है. इस दौरान खेतों कोई फसल नहीं रहती है, इस वजह से खेत भी खाली रहते हैं. वहीं गर्मी अधिक होने के कारण घास-फूंस भी सूख जाते हैं. कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि पशुओं के लिए हरे चारे का संकट हो जाता है. यही वजह है कि कई बार पशुपालक इस कमी को पूरा करने के लिए साइलेज देते हैं. वहीं इस दौरान पशुओं को दिया जाने वाला हरा चारा जहरीला हो जाता है. इसके चलते दिक्कत होती है.

एक्सपर्ट का कहना है कि कई बार सूखे की स्थिति में हरे चारे में जहरीलेपन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. चरी में हाइड्रोसाइनिक एसिड नाम का एक जहरीला पदार्थ उत्पन्न हो जाता है. जिसके खाने से 80 प्रतिशत तक पशु आकस्मिक मौत के शिकार हो जाते है. प्रभावित पशु सबसे पहले लड़खड़ाने लगता है. इसके बाद चक्कर खाकर गिर जाता है. दांतों के किरकिराने की आवाज आती है. बार-बार पशु चौंकता रहता है. सांस तेजी से चलती है. आंखों की झिल्ली नीली पड़ जाती है. पशु में बेहोशी के दौरे शुरू हो जाते हैं. अनजाने में गोबर व पेशाब निकल जाता है, अंत में पशु की मृत्यु भी हो जाती है.

हरे चारे का जहरीलेपन को ऐसे करें खत्म
इसलिए ऐसी स्थितियों से निपटने हेतु पशुपालकों को विशेष सावधानी रखने के साथ-साथ चारे के विकल्पों को भी रखा जाना चाहिये ताकि सूखे की स्थिति से निपटा जा सके. इसलिए पशुपालकों को चाहिये कि हरे चारे के जहरीलेपन से उत्पन्न होने वाले रोगों के इलाज हेतु 55-60 ग्राम सोडियम सल्फेट को 750 ग्राम पानी में घोलकर तुरंत पशु को पिला दें, फिर अपने निकटतम पशुचिकित्सक से संपर्क करें. वहीं खेत में बची हुई चरी अथवा चारे को बड़े-बड़े टुकड़ो में काटकर उचित विधि द्वारा सुरक्षित रखा जा सकता है, जिसे “साइलेज’ कहा जाता है.

साइलेज भी दिया जाता है
बताते चलें कि साइलेज बनाने हेतु चरी के बड़े-बड़े टुकड़ों को खूब दबा दबा कर तहों में उचित आकार के गढ्ढे में भर देते हैं ताकि इसके अन्दर हवा न रह जाये। गढ्‌ढा भर जाने पर पोलीथीन से ढककर नम भूसा या कड़वी की 8 सेमी मोटी तह लगाकर 15-20 सेमी मोटी तह मिट़टी की डाल देते हैं. प्रति टन साइलेज के लिये 1.5 घन मीटर का गढ्ढा पर्याप्त रहता है. ध्यान रहे कि गढ्‌ढा ऐसे स्थान पर हो जहाँ पानी न भर सके अर्थात ऊंचे स्थान पर होना चाहिये. इस विधि से चारे को काफी समय तक सुरक्षित रख सकते हैं. गढ्‌ढा खुलने के उपरान्त 15-20 दिन में ही साइलेज को इस्तेमाल कर लेना चाहिये. प्रतिदिन 6-8 किलोग्राम साइलेज पशुओं को खिलाया जा सकता है.

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