नई दिल्ली. धान के खेत में मछली पालन करके कमाई की जा सकती है. बहुत से किसान ऐसा करते भी हैं. धान के खेत में मछली पालन करने से वहां उपलब्ध प्राकृतिक भोजन उन्हें मिलता है. इससे मछलियां तेजी के साथ बढ़ती हैं. जब धान की फसल तैयार हो जाती है और खेत में पानी का स्तर कम हो जाता है, तो किसान मछली इकट्ठा करते हैं और इसे बेचकर मुनाफा कमाते हैं. एक तरफ उन्हें धान की फसल से फायदा होता है तो वहीं दूसरी ओर उन्हें मछली से. यानि एक ही मेहनत में दोगुना फायदा.
गौरतलब है कि एशिया में चावल मुख्य रुप से अनाज की फसल है. यह दुनिया में 1.6 अरब से अधिक लोगों का मुख्य भोजन है. ज्यादातर एशिया में जहां 90 प्रतिशत चावल उगाया और खाया जाता है. अधिकांश ग्रामीण किसानों के लिए, यह एकल फसल उनकी एकमात्र आजीविका का साधन भी है. चावल के खेत से भोजन के लिए प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली जंगली मछलियों को इकट्ठा करने की प्रथा शायद उतनी ही पुरानी है जितनी कि चावल की खेती है.
उत्पादकता बढ़ाने में भी है असरदार
एक्सपर्ट कहते हैं कि चावल के खेतों में मछली पालन लगभग 1,500 साल पहले भारत से दक्षिण पूर्व एशिया में किया गया था. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान खाद्य आपूर्ति की समस्याओं ने चावल के खेतों में व्यापक मछली पालन को प्रोत्साहन दिया गया था. चावल-मछली की खेती में गिरावट का कारण विभिन्न कीटनाशकों की शुरूआत रही है, जो मछली के लिए नुकसानदेह हैं. चावल-मछली पालन दक्षिण पूर्व एशिया की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. उत्पादकता बढ़ाने के लिए इसका उपयोग चावल की खेती के साथ किया जा सकता है.
कई फायदे हैं धान के साथ मछली पालन के
हालांकि चावल-मछली पालन भारत में एक सदियों पुरानी प्रथा है, लेकिन चावल के खेतों में कीटनाशकों के उपयोग के कारण धान-सह-मछली पालन को प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है. भारत में, हालांकि छह मिलियन हेक्टेयर में चावल की खेती होती है, लेकिन इसमें से केवल 0.03 प्रतिशत का उपयोग अब चावल-मछली की खेती के लिए किया जाता है. अगर इसके फायदे की बात की जाए तो जमीन का किफायती उपयोग हो जाता है. हालांकि थोड़ा अतिरिक्त श्रम जरूर लगता है लेकिन निराई और पूरक आहार के लिए श्रम लागत पर बचत होती है. वहीं चावल की बढ़ी हुई उपज मिलती है.
दो तरह से करें मछली पालन
एक्सपर्ट कहते हैं कि चावल के साथ मछली की खेती के लिए, एडीटी 6, एडीटी 7, राजराजन और पट्टांबी 15 और 16 जैसी किस्में उपयुक्त हैं. इन किस्मों में न केवल मजबूत जड़ प्रणाली होती है, बल्कि बाढ़ की स्थिति का सामना करने में भी सक्षम होती हैं. इसके अलावा, उनके पास 180 डायस का जीवन काल होता है और उनके ट्रांसप्लांट के बाद लगभग चार से पांच महीने तक मछली पालन संभव है. चावल के खेतों में मछली पालन का प्रयास दो तरह से किया जा सकता है. एक साथ पालन और रोटेशन पालन. पहले में, चावल और मछली की खेती एक साथ की जाती है और दूसरे में मछली और चावल की खेती बारी-बारी से की जाती है.
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